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Sardar-Patel

राष्ट्रीय एकता में सरदार पटेल (Sardar Patel)के योगदान

sardar vallabhbhai patel

छवि “लौह पुरूष की ऐसी न देखी, ना सोची कभी 

आवाज में सिंह सी दहाड़ थी हृदय में कोमलता की पुकार थी

एकता का स्वरूप जो इसने रचा देश का मानचित्र पल भर में बदला

गरीबो का सरदार था वो दुश्मनों के लिए लौह था वो

आँधी की तरह बहता गया बनकर गाँधी का अहिंसा का शस्त्र 

महकता गया विश्व मे जैसे कोई ब्रह्मास्त्र इतिहास के गलियारें खोजते है जिसे 

ऐसे सरदार पटेल अब न मिलते पूरे विश्व मे”

सरदार पटेल (Sardar Patel) :

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31अक्टूबर 1875 – 15 दिसंबर 1950), जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। सरदार पटेल को लौहपुरूष “Iron man of india” एवं भारत के बिस्मार्क “Bismarck of india”के नाम से भी जाना जाता है.पेशे से वह एक प्रख्यात बैरिस्टर थे. बाद में उन्होंने वकालत छोड़ दी और महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए.

उन्होंने गुजरात के बारदोली एवं खेड़ा में हुए किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बारदोली सत्याग्रह के दौरान वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की थी. भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है “प्रमुख”।

Sardar Patelभारतीय इतिहास में उनका सबसे बड़ा योगदान 1947-49 के दौरान भारत के 500 से अधिक रियासतों के एकीकरण में उनकी भूमिका थी. स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा।

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हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।

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उनके अथक प्रयासों के कारण ही आज हम नक्शे पर भारत की वर्तमान स्थिति देख पा रहे हैं. उनके इन्हीं कार्यों को याद करने के लिए एवं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके जन्मदिवस के अवसर पर 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है. राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरूआत भारत सरकार द्वारा 31 अक्टूबर, 2014 को दिल्ली में की गई थी.