Paris climate agreement | पेरिस जलवायु समझौते से अलग हुआ अमेरिका

पेरिस जलवायु समझौते (Paris climate agreement)से अलग हुआ अमेरिका | संयुक्त राष्ट्र ने शुरू की प्रक्रिया

अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र को पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने की सूचना दे दी है। इस समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने की प्रक्रिया एक वर्ष लंबी है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने इसकी जानकारी दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने देश की गैस, ऑयल और कोल इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए पेरिस समझौते का विरोध किया था और इसे अपने चुनावी एजेंडे में शामिल किया था। अमेरिका के पेरिस समझौते से निकलने की प्रक्रिया 4 नवंबर, 2020 को खत्म होगी और उसी समय अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भी आएंगे। पेरिस समझौते में अमेरिका 2015 में शामिल हुआ था, तब बराक ओबामा राष्ट्रपति थे। ओबामा प्रशासन ने वादा किया था कि 2025 तक अमेरिका अपने ग्रीन हाउस उत्सर्जन में 26-28 प्रतिशत की कटौती करेगा। 

लेकिन 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद अमेरिका ने अपने फैसले को बदल दिया। डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से हटने की वजह ये बताई कि इसमें अमेरिका के साथ भेदभाव हो रहा है।ट्रम्प का कहना था कि इस समझौते के कारण सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को हो रहा है। भारत और चीन जैसे देश इस दिशा में कुछ नहीं कर रहे हैं। जबकि भारत जैसे विकासशील देशों का रुख है कि विकसित देशों को अधिक भार उठाना चाहिए। पेरिस जलवायु समझौते पर भारत सहित 188 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इसके अंतर्गत कुछ निश्चित गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित करने या उनके उपयोग को कम करने का समझौता हुआ है। जिसमें भारत-चीन जैसे बड़े देश भी शामिल हैं।

पेरिस समझौते के अनुच्छेद 28 के अनुसार अमेरिका इससे बाहर निकल सकता है। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने पेरिस समझौते से हटने की आधिकारिक सूचना 4 नवंबर 2019 को दी है। यह समझौता 12 दिसंबर 2015 को हुआ था। अमेरिका ने 22 अप्रैल 2016 को पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और 3 सितंबर 2016 को समझौते का पालन करने की स्वीकृति दी थी। 

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक जून, 2017 को पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने का ऐलान किया था। ट्रंप ने कहा था कि पेरिस समझौते का अमेरिकी  पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। इससे अमेरिका के व्यापार और रोजगार भी प्रभावित हो रहे हैं। पेरिस समझौते से हटने के ट्रम्प के फैसले पर विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने कड़ी आपत्ति जताई है। संसद के निचले सदन की स्पीकर और डेमोक्रेट नेता नैंसी पेलोसी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन हमारे अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है। पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने का राष्ट्रपति ट्रम्प का फैसला चौंकाने वाला और गैरजिम्मेदाराना है। 

जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर होने की रूस ने भी आलोचना की है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका के हटने से इस समझौते का महत्व घट गया है, क्योंकि समझौतों में वह अग्रणी देश है। अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसका समझौते से हटना एक धक्का है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने का ऐलान पूरी दुनिया के लिए बड़े आघात जैसा है। लंबी कवायद के बाद दिसंबर 2015 में 188 देशों के बीच ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती और धरती के बढ़ते तापमान को कम करने को लेकर एक सहमति बनी थी । खुद अमेरिका ने उस समय इसकी अगुवाई की थी। 

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने निजी पहल करके भारत सहित कई देशों को समझौते पर सहमत किया था।अमेरिका के इस समझौते में नहीं रहने का मतलब है कि वैश्विक तापमान कम करने की जो कोशिशें शुरू हुई हैं, उन्हें झटका लगेगा। ट्रम्प का कहना है कि पेरिस समझौते में भारत, चीन और यूरोप को कई सहूलियतें दी गई हैं। चीन को कोयले के सैकड़ों प्लांट लगाने की इजाजत दी गई है। अमेरिका ये नहीं कर सकता लेकिन चीन कर सकता है। 

2020 तक भारत का कोयले का उत्पादन दोगुना हो जाएगा। यूरोप को भी कोयले का प्लांट बनाने की इजाजत दी गई है। जबकि कार्बन उत्सर्जन के जरिए प्रदूषण फैलाने के मामले में अमेरिका और चीन के मुकाबले भारत काफी पीछे है। जून 2016 की विश्व ऊर्जा सांख्यिकी समीक्षा के मुताबिक चीन सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला देश है जो दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का अकेले 27.3 प्रतिशत उत्सर्जन करता है। इसके बाद अमेरिका का स्थान है। अमेरिका 16.4 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन करता है। भारत मात्र 6.6 प्रतिशत कार्बन का उत्सर्जन करता है।

दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है। ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका के लोग भारत के लोगों की तुलना में  5 से 12 गुना ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। भारत एक समय अपनी कुल बिजली का 75 प्रतिशत उत्पादन कोयले से करता था, जो घटकर अगस्त 2016 तक 61 प्रतिशत हो गया है। भारत धीरे-धीरे नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा आदि की ओर बढ़ रहा है। 

ट्रम्प की राय के विपरीत भारत अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों को निभाने में कभी भी पीछे नहीं रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प गलत तथ्यों के आधार पर समझौते को ठुकरा रहे हैं। चुनाव के दौरान भी उन्होंने इस समझौते की आलोचना की थी, लेकिन तब उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया था।वास्तव में किसी ने भी सोचा नहीं था कि अमेरिका में कोई नया प्रशासन अपने पूर्व प्रशासन द्वारा किए गए वैश्विक समझौते और वायदे से मुकरने की कोशिश करेगा । ट्रंप के इस कदम के बाद बराक ओबामा भी उनके विरोध में खुलकर सामने आ गए हैं। ओबामा ने एक बयान जारी कर ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा कि समझौते का पालन न कर अमेरिका आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बर्बाद करेगा। 

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