प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने विवादित भूमि पर मंदिर बनाने और मुस्लिमों को मस्जिद के लिए वैकल्पिक जगह देने का आदेश दिया है। पीठ ने अयोध्या(Ayodhya) के रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर लगातार 40 दिनों तक सुनवाई के बाद सर्वसम्मति से अपना यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने 40 दिन तक मैराथन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब 9 नवंबर को कोर्ट ने विवादित भूमि पर मंदिर बनाने के लिए सरकार को आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह तीन से चार महीने के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट ट्रस्ट की स्थापना के लिए योजना बनाए और विवादित स्थल को मंदिर निर्माण के लिए सौंप दे। अदालत ने यह भी कहा कि अयोध्या में पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए प्रदान करे।
अदालत ने कहा कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपने मामले को साबित करने में विफल रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात के प्रमाण हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले राम चबूतरा, सीता रसोई पर हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती थी। अभिलेखों में दर्ज साक्ष्य से पता चलता है कि हिंदुओं का विवादित भूमि के बाहरी हिस्से पर कब्जा था। सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) संदेह से परे है। इसके अध्ययन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक बी.बी. लाल ने पहली बार 1976-1977 में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था। उस दल में के.के. मुहम्मद भी शामिल थे। कुछ सालों बाद के.के. मुहम्मद ने कहा कि विवादित स्थल पर हुए पुरातात्विक सर्वेक्षण में वहां से प्राचीन मंदिरों के अवशेष मिले थे। बाद में जो सर्वेक्षण वर्ष 2003 में किया गया उसमें भी तीन मुसलमान शामिल थे, जो भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण में काम करते थे। के.के. मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में निदेशक (उत्तर भारत) के पद से कुछ वर्ष पहले सेवानिवृत हुए हैं।
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इससे पहले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शीर्ष के अधिकारियों को बुलाकर मुलाकात की थी। उन्होंने फैसले के दिन कानून-व्यवस्था बनाए रखने को लेकर निर्देश दिया था। फैसले को देखते हुए उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं।
फैसले के आने के बाद सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि वे फैसले पर अभी चर्चा करेंगे और बाद में तय करेंगे कि इसकी समीक्षा के लिए याचिका दायर करें या नहीं। बहरहाल इस फैसले का आदर करना चाहिए। हमें इसके खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। मस्जिद हम किसी को दे नहीं सकते। यह हमारी शरियत में नहीं है। लेकिन कोर्ट का फैसला मानेंगे। लेकिन फैसला संतोषजनक नहीं है।
अयोध्या में शांति बनाए रखने के लिए अर्धसैनिक बलों, आरपीएफ, पीएसी और 1200 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। 250 सब इंस्पेक्टरों के साथ-साथ बड़े अधिकारी भी तैनात किए गए हैं। यही नहीं शहर में 35 सीसीटीवी और 10 ड्रोन कैमरों से भी नजर रखी जा रही है। पूरे यूपी में धर्मगुरुओं और नागरिकों के साथ 10 हजार बैठकें की गई हैं। अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर पूरे उत्तर प्रदेश में धारा-144 लगा दी गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट् करके कहा कि अयोध्या पर फैसले को किसी समुदाय की हार या जीत के तौर पर नहीं देखना चाहिए। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, वो किसी की हार-जीत नहीं होगा। देशवासियों से अपील है कि हम सब की यह प्राथमिकता रहे कि ये फैसला भारत की शांति, एकता और सद्भावना की महान परंपरा को और बल दे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इसमें एक हिस्सा रामलला विराजमान को, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को देने का आदेश था। हाईकोर्ट ने रामलला विराजमान को वही हिस्सा देने का आदेश दिया था जहां वे अभी विराजमान हैं। इसके खिलाफ सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दाखिल की थी। मुगल शासक बाबर के आदेश पर 1528 में अयोध्या में राम जन्मभूमि के ऊपर विवादित मस्जिद का निर्माण हुआ था। यह ढांचा हमेशा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद का विषय रहा है। छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया गया था।
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