नागरिकता संशोधन विधेयक: विपक्ष के तीखे हमलों के बीच संसद में पारित हुआ
विपक्ष के तीखे हमलों के बीच सरकार ने 09 दिसंबर 2019 को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पारित करवाने में सफलता हासिल कर ली, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों से धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेल रहे हिंदू, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी समुदायों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक के पक्ष में 311 और विपक्ष में 80 वोट पड़े, इस दौरान लोकसभा के सभी सांसद सदन में उपस्थित रहे।
हालांकि देश के अलग—अलग हिस्सों में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर ज़बरदस्त विरोध हो रहा है और विपक्षी पार्टियां भी इस विधेयक के विरोध में एक जुट हो गई है। इस अवसर पर संसद में सरकार ने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह विधेयक ‘नेहरू-लियाकत संधि’ के अधूरे काम को पूरा करने वाला साबित होगा। सत्ता पक्ष का कहना है कि इस विधेयक द्वारा संविधान का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं होता है और एक उचित वर्गीकरण के आधार पर शरणार्थियों को इसमें नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है, जिससे अनुच्छेद 14 का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
सरकार का कहना है कि हमारे पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर धर्म के नाम पर होने वाले उत्पीड़न को लेकर भारत मूक दर्शक बना नहीं रह सकता है। हमने इतिहास में विभिन्न समय पर बिना किसी अपवाद के सभी को शरण दी है।
सरकार के मुताबिक भारत में मुस्लिम आबादी 9.8% से बढ़कर 14% हो गई है, जो यह साबित करता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित है और इस विधेयक से उनके अधिकार किसी भी प्रकार प्रभावित नहीं होंगे।
सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए विपक्ष ने कहा कि विधेयक का दायरा केवल तीन देशों तक ही सीमित क्यों रखा गया है, श्रीलंका या म्यांमार जो ब्रिटिश भारत का हिस्सा था, उसके संदर्भ में कोई बात इस विधेयक में क्यों नहीं है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यह देश राजनीतिक दृष्टि से आपके लिए फायदे का सौदा नहीं है। विपक्ष ने इसे एक ऐतिहासिक भूल बताते हुए कहा कि इस विधेयक को जल्दबाजी में केवल इसलिए लाया गया है, जिससे एनआरसी में बेदखल हुए हिंदू शरणार्थियों को समायोजित किया जा सके और लाखों मुसलमानों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाए। यह एक ऐतिहासिक भूल है।
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सरकार के तर्कों के बावजूद भी पूर्वोत्तर के लोगों इस बिल का कड़ा विरोध कर रहे है। पूर्वोत्तर के लोगों को डर है कि इस विधेयक का मसौदा मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए अवैध बंगाली हिंदू प्रवासियों को लाभान्वित करने के लिए किया गया, जिनकी जनसंख्या इस पूरे क्षेत्र में बहुत अधिक हैं। यह एक स्थापित तथ्य है कि पूर्वोत्तर प्रदेशों में मुस्लिम और हिंदु, दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध रूप से प्रवेश करते है और इस बिल के माध्यम से इन अवैध हिंदू प्रवासियों को वैध बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
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नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती है। वे लोग, जिन्होंने पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया है या वैध दस्तावेजों के साथ भारत में प्रवेश किया हैं, लेकिन इसमें उल्लिखित अवधि से अधिक समय तक यहां रहते हैं, उनकों इस कानून के तहत अवैध प्रवासी माना जाता है और जब तक सरकार इन लोगों को शरणार्थियों के तौर पर मान्यता नहीं देती, यह लोग भारत की नागरिकता पाने के अधिकारी नहीं है। नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत प्राकृतिक तौर पर नागरिकता पाने के लिए आवेदक पिछले 12 महीनों से भारत में निवास कर रहा हो और साथ ही पिछले 14 वर्ष की निर्धारित अवधि में से कम से कम 11 साल भारत ही रहा हो।
यह विधेयक इन तीन देशों से आने वाले इन छह धर्मों के नागरिकों के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 की दूसरी शर्त जिसमें 11 वर्ष रहने की अनिवार्यता को कम कर 6 वर्ष करता है।
हालांकि, 2015 और 2016 में सरकार ने 1946 और 1920 अधिनियमों के प्रावधानों से अवैध अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को छूट देने का निर्णय लिया, इसमें उन लोगों को शामिल किया गया जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत पहुंच गए थे।
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