संदेह जगाने वाला अमेरिकी आचरण: वैक्सीन निर्माण के लिए सामग्री उपलब्ध कराने में बाइडन प्रशासन भारत को लेकर असंवेदनशील है
- हर्ष वी पंत:
संदेह जगाने वाला अमेरिकी आचरण: वैक्सीन निर्माण के लिए सामग्री उपलब्ध कराने में बाइडन प्रशासन भारत को लेकर असंवेदनशील है| आखिरकार कुछ ना-नुकुर के बाद, अमेरिका ने भारत को वैक्सीन निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने का फैसला तो कर लिया| लेकिन इसमें टालमटोल से जो नुकसान होना था, वह तो हो ही गया। बीते दो दशकों से भी अधिक समय से दोनों देशों के जो रिश्ते लगातार प्रगाढ़ हो रहे थे, उस पर बाइडन प्रशासन ने दो दिनों में ही पानी फेरने का काम कर दिया। फिलहाल भारत कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के जिस अप्रत्याशित एवं अभूतपूर्व संकट से दो-चार है, उसमें पाकिस्तान जैसे बिगड़ैल पड़ोसी तक कम से कम प्रतीकात्मक ही सही, लेकिन साथ में खड़े होने की बात तो कर रहे हैं। इसकी तुलना में खुद को भारत का सबसे बड़ा हितैषी और सहयोगी बताने वाले अमेरिका का रवैया देखिए।
To buy our online courses: Click Here
अमेरिका पहले अपने लोगों की जान बचाने के लिए प्रतिबद्ध
भारत द्वारा वैक्सीन के लिए कच्चे माल की मांग पर अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि हम पहले अपने लोगों की जान बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अमेरिका का यह रवैया न केवल द्विपक्षीय संबंधों पर आघात करने वाला, बल्कि एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है। वह भी तब जब अमेरिका चीन के मुकाबले अपनी नई छवि गढ़ने में जुटा है। अमेरिका ने यह बयान तब दिया, जब वहां वैक्सीन के भंडार लबालब भरे हैं और एक बड़ी संख्या में अमेरिकियों को कोरोना रोधी टीका लगाया भी जा चुका है
दूसरे देशों की मदद न करना मानवता के प्रति अपराध
जब अपनी जरूरत की पूर्ति के लिए पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध हो तो दूसरे देशों की मदद न करना एक तरह से मानवता के प्रति अपराध ही है। अमेरिका के मुकाबले कहीं बड़ी आबादी वाले भारत में अभी टीकाकरण की प्रक्रिया जारी है और इसी बीच कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बेलगाम होती जा रही है, फिर भी अमेरिका तत्काल सहयोग के बजाय भारत को टरकाता रहा। यह स्थिति तब बनी, जब गत वर्ष भारत ने संकट के समय अमेरिका की भरपूर मदद की थी।
अमेरिका ने मदद करने में की हीलाहवाली, फ्रांस, ब्रिटेन हरसंभव मदद को तैयार
जहां हमारी मुसीबत के समय अमेरिका ने एक तरह से हाथ खड़े करके हीलाहवाली का परिचय दिया वहीं फ्रांस, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे कई देशों के शीर्ष नेताओं ने न केवल भारतीय नेतृत्व के साथ संवाद स्थापित किया, बल्कि हरसंभव मदद का आश्वासन भी दिया। भारत को मिलते ऐसे वैश्विक समर्थन से ही शायद अमेरिका की आंखें खुली हों और कुछ सोच-विचार के बाद वह वैक्सीन निर्माण के लिए आर्पूित सुनिश्चित करने पर सहमत हुआ। हालांकि केवल इसी कारण बाइडन प्रशासन भारत की मदद के लिए तैयार नहीं हुआ। अमेरिका में घरेलू स्तर पर भी भारत के पक्ष में बड़ा दबाव पड़ा। वहां सार्वजनिक जीवन से जुड़ी कई हस्तियां और सांसद तक इसके पक्ष में आवाज उठा चुके थे।
अमेरिका ने कोरोना वैक्सीन के पेटेंट को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया
अमेरिका में प्रभावशाली भारतीय मूल के लोग भी लामबंद हुए। यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स को आशंका थी कि इससे अमेरिका-भारत के बीच परवान चढ़ रहे व्यापारिक रिश्ते पटरी से उतर सकते हैं। इन सभी पहलुओं का आकलन करने के बाद ही बाइडन प्रशासन ने भारत की मदद के लिए हाथ बढ़ाया। हालांकि यह हाथ अभी भी आधा-अधूरा ही बढ़ा है, क्योंकि अमेरिका ने कोरोना वैक्सीन के पेटेंट को लेकर रियायत के मसले पर कोई निर्णय नहीं लिया है, जिसके लिए भारत मुहिम चला रहा है।
संदेह जगाने वाला अमेरिकी आचरण: भारत की मदद के लिए अमेरिका ने पहले हिचक क्यों दिखाई?
इस पूरे प्रकरण में एक अहम प्रश्न यही उठता है कि भारत की मदद के लिए अमेरिका ने पहले हिचक क्यों दिखाई? अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे वैचारिक पूर्वाग्रह हावी रहे। कहा जा रहा है कि बाइडन प्रशासन निजी तौर पर मोदी सरकार को लेकर बहुत सहज नहीं है। यदि ऐसा है तो यह और भी शर्मनाक है। कोरोना संकट सरीखी वैश्विक आपदा में अगर अमेरिका जैसा उदार एवं लोकतांत्रिक देश भी मदद के लिए वैचारिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो तो यह उसके माथे पर किसी कलंक से कम नहीं। फिर जिस मोदी सरकार पर कथित रूप से हिंदू राष्ट्रवादी सरकार होने के आरोप लगाए जाते हैं, क्या कोरोना काल में उसके कामकाज को देखकर ऐसा कहा जा सकता है?
इस कथित हिंदू राष्ट्रवादी सरकार ने अपने नागरिकों की जरूरतों की परवाह न कर दुनिया के 90 से अधिक देशों में कोरोना वैक्सीन के करोड़ों टीके पहुंचाए। उनमें कैथोलिक चर्च को मानने वाले ईसाई देशों से लेकर शरीयत से चलने वाले इस्लामिक मुल्क तक शामिल हैं।
भारत ने अपनी हैसियत से अधिक मदद पहुंचाई, विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने की प्रशंसा
भारत ने टीके पहुंचाने में कोई पक्षपात नहीं किया। इतना ही नहीं कोरोना की पहली लहर के दौरान तमाम जरूरी दवाएं और उपकरण मुहैया कराए। कुल मिलाकर भारत ने अपेक्षाकृत कम संसाधनों वाला देश होने के बावजूद अपनी हैसियत से अधिक मदद पहुंचाई। भारत के इन प्रयासों की बिल गेट्स से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
अमेरिका ने भारत को वैक्सीन के लिए सामग्री देने में आनाकानी कर गलत संदेश दिया
इसी महीने सात अप्रैल को भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में अमेरिकी जंगी जहाज की गश्त को कुछ दिन बीते ही थे कि अमेरिका ने भारत को वैक्सीन के लिए सामग्री देने में आनाकानी कर एक गलत संदेश दिया।
इससे यही जाहिर होता है कि बाइडन प्रशासन भारत की संवेदनाओं को लेकर असंवेदनशील है। भले ही अमेरिकी मदद के बाद तात्कालिक रूप से इस प्रकरण का पटाक्षेप हो गया है, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ होंगे। कोरोना काल में चीन केंद्रित आपूर्ति शृंखला का विकल्प बनाने की पहल को इससे आघात पहुंचेगा।
अमेरिका की साख को बड़ा झटका लगेगा
एक आपूर्तिकर्ता के रूप में अमेरिका की साख को बड़ा झटका लगेगा कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पिछले कुछ अरसे से भारतीय विदेश नीति के अमेरिका के पक्ष में हद से ज्यादा झुकने का आरोप लगाने वाले खेमे को भी इससे ताकत मिलेगी कि भारत उस पर अधिक भरोसा करने करने का जोखिम न मोल ले।
भारतीयों के मन में भी अमेरिका को लेकर एक नकारात्मक धारणा बनेगी। साथ ही क्वाड, हिंद-प्रशांत भागीदारी, द्विपक्षीय व्यापार और अवसंरचना के स्तर पर दोनों देशों के बीच जुड़ाव पर भी ग्रहण लग सकता है। कुल मिलाकर अमेरिका के साथ संबंधों में पुरानी हिचकिचाहट वापस लौटेगी। इस मामले का एक सबक यह भी है कि भारत को सोचना होगा कि उसे अपनी अन्य लड़ाइयों की तरह कोरोना के खिलाफ जंग भी खुद ही जीतनी होगी। इतिहास साक्षी है कि अमेरिका ने अतीत में जब भी खाद्य, परमाणु और अंतरिक्ष के मामले में भारत को आंखें दिखाई हैं तो भारत ने अपनी क्षमताएं निखारकर आत्मनिर्भरता हासिल करने में सफलता हासिल की है। यह पड़ाव भी कुछ ऐसा ही है।