नुकसान की वसूली Recovery of loss

नुकसान की वसूली Recovery of Loss

Recovery of lossनुकसान की वसूली: दंगो की सजा को सिर्फ आर्थिक नुकसान और उसकी वसूली तक सिमित नहीं किया जा सकता, दंगे इससे कहीं ज्यादा गम्भीर सामाजिक अपराध हैं । 

उत्तर प्रदेश सरकार ने 130 दंगे के आरोपियों से वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रदेश में पिछले दिनों हुए प्रदर्शनों के दौरान जो हिंसा हुई थी, अनुमान लगाया गया है कि उसमें सार्वजनिक संपत्ति का 50 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। कहा जा रहा है कि अब यह नुकसान आरोपी बलवाइयों से वसूला जाएगा।

इसके लिए जगह-जगह पर सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए हैं, यहां तक कि पहचान के लिए आरोपियों की तस्वीरों वाले पोस्टर भी पुलिस ने दीवारों पर चिपकाए हैं।

जिस तनावपूर्ण माहौल के कारण पिछले दिनों उत्तर प्रदेश समेत देश के कई अन्य हिस्सों में हिंसा हुई थी, वह माहौल अभी भी बरकरार है। लोग आगे ऐसी घटनाओं से बाज आएं, मुमकिन है कि इसी सोच के साथ प्रशासन ने यह कार्रवाई की होगी। पर यह कार्रवाई अंत में किस परिणति तक पहुंचेगी, अभी नहीं कहा जा सकता।

प्रदर्शन-हिंसा

सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली प्रदर्शन करने वालों या दंगाइयों से की जाए, यह विचार अपने आप में नया नहीं है, कई बार अदालतों ने भी इसके लिए कहा है। इसकी कई बार कोशिश भी हुई, लेकिन कहीं भी सचमुच इसकी वसूली हो पाई हो, ऐसी जानकारी हमारे पास नहीं है।

साल 2012 में मुंबई के आजाद पार्क में हुई एक रैली के दौरान हिंसा हुई थी। बाद में यह पाया गया कि उस हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति को लगभग पौने तीन करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा था। इसके लिए महाराष्ट्र पुलिस ने वसूली-नोटिस भी जारी किया। लेकिन वसूली हो पाई, ऐसी खबर कभी नहीं आई।

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यह शायद बहुत आसान भी नहीं है। मामला अंत में अदालत में जाएगा और वहां सीसीटीवी फुटेज सुबूत के तौर पर कितने स्वीकार्य होंगे, यह भी नहीं कहा जा सकता। दंगा रोकने के लिए ऐसे कदम कुछ हद तक प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन वसूली अपने आप में दंगे की सजा नहीं हो सकती। अगर हम दंगे के बाद की सारी कार्रवाई को सिर्फ वसूली तक सीमित कर देते हैं, तो कहीं न कहीं हम इसे आर्थिक अपराध बना देते हैं, जबकि सार्वजनिक हिंसा और दंगा पूरे समाज को भयाक्रांत करने वाला अपराध है। इसे सिर्फ आर्थिक नुकसान की नजर से नहीं देखा जा सकता।

सार्वजनिक संपत्ति नुकसान आकलन 

सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का तो आकलन हो सकता है, लेकिन घायल होने वालों और अपनी जान गंवाने वालों के नुकसान का आकलन आप कैसे करेंगे? दंगा सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं है, यह एक सामाजिक अपराध है, जो प्रत्यक्ष नुकसान से कहीं ज्यादा समाज को विषाक्त करने का काम करता है।

इसकी सजा कहीं ज्यादा बड़ी होनी चाहिए। हम आमतौर पर दंगाइयों को सजा नहीं दे पाते हैं, इसलिए यह उम्मीद भी व्यर्थ है कि उनसे नुकसान की वसूली हो सकेगी।

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बात सिर्फ इतनी नहीं है। अपने देश में दंगे सिर्फ दंगे नहीं होते, उनके पीछे अक्सर कोई न कोई राजनीति होती है। राजनीतिक दल चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में, उनकी दिलचस्पी दंगों का राजनीतिक लाभ लेने में ज्यादा होती है, दंगाइयों को दंडित कराने में कम।

एक सच यह भी है कि जो लोग पथराव करते हैं या बसें जलाते हैं, उनको हम पकड़ सकते हैं और सजा भी दे सकते हैं, पर इसके पीछे के वे नेता, जो उसके असली सूत्रधार होते हैं, वे फिर भी बच ही जाएंगे। दंगों को खत्म करने की पहली शर्त है कि उसकी राजनीति को खत्म किया जाए।

Source: Hindustan | Editorial

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