पर्यावरण बचाने की कोशिश का अगला कदम

आज न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु परिवर्तन सम्मेलन शुरू हो रहा है, जिसमें दो बातों पर विशेष फोकस रहेगा। एक, सभी देश जलवायु परिवर्तन को लेकर घोषित अपने लक्ष्यों में इजाफा करें और दूसरी, जलवायु खतरों से निपटने के लिए जो कार्य अभी वे कर रहे हैं, उनमें तेजी लाएं। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को अगले दस साल के भीतर हासिल करना है। ऐसा हो सका, तो संयुक्त राष्ट्र के लिए तापमान बढ़ोतरी को सदी के अंत तक 1.5 डिग्री से नीचे रखने के लक्ष्य पर कार्य करना आसान होगा। जबकि अभी पेरिस समझौते के तहत इसे दो डिग्री से नीचे रखने के लक्ष्य पर ही कार्य हो रहा है। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र महासचिव की पहल पर बुलाया गया है। इसमें राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया है, इसीलिए यह काफी महत्वपूर्ण हो गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव चाहते हैं कि पेरिस समझौते में जिन अहम मुद्दों पर सहमति बनी थी, उन मुद्दों पर सभी देश अपने नए लक्ष्य घोषित करें। पेरिस समझौते के अनुसार हर पांच साल में लक्ष्यों का नए सिरे से निर्धारण होना है और इसका पहला चक्र 2020 में आरंभ होना है।

save the environment

जलवायु सम्मेलन में चार मुद्दों पर विश्व का ध्यान संयुक्त राष्ट्र की तरफ से खींचा जा रहा है। इनमें पहला मुद्दा है कि दुनिया में 2020 के बाद कोयले से चलने वाली किसी परियोजना को मंजूरी न दी जाए। दूसरा, जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए। तीसरा, प्रदूषण फैलाने वालों से करों के रूप में जुर्माना वसूला जाए तथा चौथा मुद्दा है, 2050 तक कार्बन निरपेक्षता लाई जाए या जीरो कार्बन उत्सर्जन सुनिश्चित किया जाए। इसका मतलब यह है कि उतना ही कार्बन उत्सर्जित होना चाहिए, जितना प्राकृतिक और मानव र्नििमत तरीकों से सोखा जा सकता है। इन चार मुद्दों पर यदि भारत की स्थिति देखें, तो काफी हद तक हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं। जिस तेजी से सौर और पवन ऊर्जा में निवेश किया गया है और 175 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य पर काम किया जा रहा है, उसके मद्देनजर भविष्य में कोयला बिजलीघरों की स्थापना की आशंका कम ही है। वैसे भी पिछले कुछ साल में बड़े पैमाने पर कोयला बिजली परियोजनाएं रद्द की गई हैं। यह माना जा रहा है कि भारत 2030 से पहले 50 फीसदी से अधिक ऊर्जा अक्षय स्रोतों से पैदा करने का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा। जबकि पेरिस समझौते में 40 फीसदी अक्षय या स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य रखा गया है। भारत लक्ष्य से अधिक हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। 

जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी खत्म करने पर भी भारत की पहल अच्छी रही है। अभी यह पूरी तरह तो खत्म नहीं हुई है, लेकिन पिछले पांच साल में इसमें भारी कमी आई है। 2014 में जीवाश्म ईंधन पर 29 अरब डॉलर की सब्सिडी दी जा रही थी, जो 2017 में घटकर आठ अरब डॉलर रह गई। सब्सिडी का ज्यादातर हिस्सा रसोई गैस और केरोसिन पर है, जो सिर्फ जरूरतमंदों पर केंद्रित है। भारत के लिए हालांकि इस सब्सिडी को खत्म करना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन देखना यह है कि वह इस पर क्या कहता है। 

संयुक्त राष्ट्र जिस तीसरे मुद्दे पर फोकस कर रहा है, उसे लेकर भारत में अभी नीतिगत स्तर पर बड़ी दुविधा है। प्रदूषणकारी उद्योगों, सेवाओं पर कर लगाकर भरपाई करने, प्रदूषण फैलाने वालों पर जुर्माना लगाने की बात देश में कई बार होती है। लेकिन इस पर कोई कानूनी पहल अभी तक नहीं हुई है। इसे संस्थागत स्तर पर क्रियान्वित करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। लेकिन देर सवेर भारत को इस दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इसी प्रकार चौथा और सबसे अहम है कि कैसे 2050 तक कार्बन निरपेक्षता लाई जाए और सभी देश इस दिशा में अपनी घोषणाएं करें। अब यह माना जा रहा है कि यदि 2030 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करें, तो फिर तापमान बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री तक सीमित रखना संभव होगा। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब 2050 तक कार्बन निरपेक्षता आए। यानी उतना ही कार्बन उत्र्सिजत हो, जितना सोखने की क्षमता प्रकृति के पास है या फिर मानव अपने प्रयासों से सोख सकता है। लेकिन यह माना जाता है कि इसके लिए पूरी दुनिया को कार्बन डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन में करीब 80 फीसदी की कमी साल 2050 तक करनी होगी। क्या न्यूयॉर्क के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से इसका रास्ता तैयार होगा?

Author: मदन जैड़ा | ब्यूरो चीफ | नई दिल्ली

Source :  हिन्दुस्तान | 20 Sep 2019