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राजनीतिः अंतरिक्ष का सामरिक महत्त्व : के सिद्धार्थ

अंतरिक्ष की राजनीति, इसके आर्थिक फायदे उठा लेने से भी ज्यादा किसी भी देश के अपना बचाव या दूसरे पर हमला करने की क्षमता से भी जुड़ी है। यह तो समय ही बताएगा कि अंतरिक्ष का ज्ञान किस तरह पृथ्वी पर नियंत्रण करने वाले मानव और उसके भविष्य को तय करेगा। अंतरिक्ष की तकनीक, उसकी समस्या, उसका प्रबंधन और उसका उपयोग अब एक अलग उद्योग है। जो देश इसमें आगे होंगे, वे न केवल पैसा कमाएंगे बल्कि एक नए समुदाय का निर्माण करेंगे।

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अमेरिका चाहता है कि 2024 तक अमेरिकी फिर चंद्रमा पर जाए। इस तरह के साहसी मिशनों के लिए निजी क्षेत्र का दखल बढ़ रहा है। सन 1958 और 2009 के बीच अंतरिक्ष में लगभग सभी खर्च सरकारी एजेंसियों खासतौर से नासा और पेंटागन ने उठाए थे।

इक्कीसवीं सदी में अंतरिक्ष की नई होड़ न तो अप्रत्याशित है और न ही बिना सोची-समझी। अंतरिक्ष ही पृथ्वी और मानवता का भविष्य भी हो सकता है और भविष्य का युद्ध स्थल भी। इसलिए अंतरिक्ष पर नियंत्रण और प्रभुत्व जमाने के लिए उन सभी देशों में होड़ लगी है जो या तो महाशक्तियां हैं या फिर महाशक्ति बनने की मंशा रखते हैं। अंतरिक्ष का नियंत्रण और इसका उपयोग ही है जिसके कारण आज दुनिया में मोबाइल, इंटरनेट, टीवी जैसी संचार सुविधाएं उपलब्ध हैं और संचार नेटवर्क ने ही पूरी दुनिया को एक गांव में तब्दील कर दिया है। अंतरिक्ष मानव जाति के कल्याण का रास्ता तो है ही, साथ ही अब यह आर्थिक लाभ का और इससे भी अधिक आक्रमण और रक्षा करने का भी रास्ता बन गया है। अमेरिका ने चांद पर मनुष्य भेज कर पूरे विश्व में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवा लिया था, जिससे वह शीतयुद्ध में सबसे आगे निकलने में सक्षम हो गया। आज अमेरिका इसी क्षमता को आर्थिक रूप से भुना रहा है।

शीतयुद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही एक-दूसरे को पीछे छोड़ कर अंतरिक्ष में अपना वर्चस्व जमाने की होड़ में लगे थे| शीतयुद्ध का सबसे बड़ा हथियार अंतर-महाद्वीपीय मिसाइल भी अंतरिक्ष तकनीक का ही हिस्सा थी। अब इससे भी आगे जाने की बारी है। अपने निकटतम उपग्रह चंद्रमा पर जाकर अपना प्रभुत्व जमाने की यह होड़ अब शुरू हो गई है। भारत के इस होड़ में कूदने के बाद अब यह और तेज होगी।

अंतरिक्ष का विकास अब तक नागरिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए प्रसारण और नौ-संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए उपग्रह संचार पर केंद्रित रहा है। पर अब कई चीजें बदल रही हैं। प्रौद्योगिकी अपनी ज्ञात सीमा से आगे बढ़ रही है और डिजाइन का उपयोग भी विविध और ज्यादा मानवतावादी हो गया है। भू-राजनीति पृथ्वी की निम्न-कक्षा की उथल-पुथल से आगे मनुष्यों को भेजने के लिए एक नई होड़ पैदा कर रही है। चीन 2035 तक लोगों को चंद्रमा पर भेजने की योजना बना रहा है। अमेरिका चाहता है कि 2024 तक अमेरिकी फिर चंद्रमा पर जाए। इस तरह के साहसी मिशनों के लिए निजी क्षेत्र का दखल बढ़ रहा है। सन 1958 और 2009 के बीच अंतरिक्ष में लगभग सभी खर्च सरकारी एजेंसियों खासतौर से नासा और पेंटागन ने उठाए थे। पिछले एक दशक में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी निवेश सालाना औसतन दो अरब डॉलर या कुल खर्च के पंद्रह फीसद तक बढ़ गया है। यह और अधिक बढ़ने के लिए तैयार है। स्पेस-एक्स तो इक्कीस सफल उपग्रह छोड़ चुकी है। अब अंतरिक्ष पृथ्वी का ही एक विस्तार बनने की ओर है। यह केवल सरकारों के लिए नहीं बल्कि कंपनियों और निजी व्यक्तियों के लिए एक नया क्षेत्र बनेगा। लेकिन इसे पूरा करने के लिए दुनिया में अंतरिक्ष के कानूनों की एक व्यवस्था बनाने की जरूरत पड़ेगी और ये ही नियम शांति और युद्ध में भी कारगर भूमिका निभाएंगे।

अंतरिक्ष की राजनीति, इसके आर्थिक फायदे उठा लेने से भी ज्यादा किसी भी देश के अपना बचाव या दूसरे पर हमला करने की क्षमता से भी जुड़ी है। यह तो समय ही बताएगा कि अंतरिक्ष का ज्ञान किस तरह पृथ्वी पर नियंत्रण करने वाले मानव और उसके भविष्य को तय करेगा। अंतरिक्ष की तकनीक, उसकी समस्या, उसका प्रबंधन और उसका उपयोग अब एक अलग उद्योग है। जो देश इसमें आगे होंगे, वे न केवल पैसा कमाएंगे बल्कि एक नए समुदाय का निर्माण करेंगे। यह उन देशों की नई शक्ति का परिचायक भी होगा। सबसे अच्छी बात है कि भारत अब इस सबका हिस्सा है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर अब अंतरिक्ष को एक नए नजरिये से देखने की जरूरत बढ़ जाती है।

अगले पचास साल अंतरिक्ष के लिए काफी अलग और रोमांच भरे होंगे। अंतरिक्ष की नई उपयोगिताओं की खोज, रक्षा क्षेत्र के लिए इसका अधिक से अधिक उपयोग, हमले और निगरानी के मकसद से उपयोगिता बढ़ाने के रूप में उपग्रहों को गिराने की लागत, चीन और भारत जैसे देशों की अंतरिक्ष में बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएं, ये सभी मिलकर ऐसे पहलू हैं जिनमें उद्यमियों की एक नई पीढ़ी अंतरिक्ष विकास के नए युग का आगाज करने वाली है।

अंतरिक्ष एक नया युद्ध क्षेत्र होगा। पहला उपग्रह छोड़े जाने के साठ साल बाद अंतरिक्ष अब सैन्य होड़ का नया मैदान बन गया है। यही वजह है कि इस पर विकसित देश कब्जा करना और हावी होना चाहते हैं। पिछले साल अमेरिका ने अपनी सेना की छठी शाखा की स्थापना करके संकेत दिया था। उसने अपनी ‘स्पेसफोर्स’ के साथ एक अमेरिकी अंतरिक्ष कमान बनाई है। अंतरिक्ष और साइबर युद्ध के लिए जिम्मेदारियों के साथ चीन ने 2015 में अपनी सेना की पांचवीं शाखा ‘स्ट्रेटेजिक सपोर्ट फोर्स’ बनाई। इसी संदर्भ में भारत ने रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (डीएसए) की स्थापना की शुरुआत की है। सैन्य उपयोग को लेकर अंतरिक्ष ने शुरू से ही रुचि जगाई है। वास्तव में अधिकांश अंतरिक्ष । कार्यक्रम सैन्य उद्देश्यों से ही संचालित थे।

बाहरी अंतरिक्ष संधि (आउटर स्पेस ट्रिटी) अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती पर प्रतिबंध लगाती है। यह आकाशीय पिडों पर सैन्य ठिकानों को बनाने पर रोक लगाती है। पर यह अंतरिक्ष में पारंपरिक सैन्य गतिविधियों, अंतरिक्ष-उन्मुख सैन्य बलों या अंतरिक्ष में पारंपरिक हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाती। रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी बनाने का फैसला भारत के किफायती अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए किया गया है। अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों के नियंत्रण के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआइए) और राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान कार्यालय (एनटीआरओ) जैसी एजेंसियों के माध्यम से काम किया जाएगा। अधिकांश देशों में अंतरिक्ष के नागरिक कार्य उनके अनिवार्य रूप से सैन्य कार्यक्रमों का एक हिस्सा । थे। भारत का एक अलग रुख था जिसने जोर देकर कहा कि उसका कार्यक्रम विकासात्मक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए है।

रक्षा के अलावा अंतरिक्ष खुद को एक नए क्षेत्र के रूप में विकसित करेगा। अंतरिक्ष कमाई के नए स्रोत के रूप में विकसित हो रहा है और निश्चित रूप से यह सभी के लिए समृद्ध और बेहतर संचार नेटवर्क के लिए पर्यटन को शामिल करेगा। लंबे समय में इसमें खनिज दोहन और यहां तक कि बड़े पैमाने पर परिवहन शामिल हो सकता है। ये कुछ नए व्यावसायिक मॉडल हैं जो या तो विकसित हो रहे हैं या होने के करीब हैं। अंतरिक्ष में ये नए व्यवसाय अब बहुत भिन्न हैं। इनमें निचली कक्षाओं में संचार उपग्रहों के समूहों को प्रक्षेपित करने और रखरखाव का बड़ा कारोबार और अमीरों के लिए पर्यटन प्रमुख हैं। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक अंतरिक्ष उद्योग का सालाना राजस्व दोगुना होकर आठ सौ अरब डॉलर हो सकता है। कुछ लोग मंगल पर बसने की इच्छा रखते हैं। अमेजन के संस्थापक आर्मस्ट्रांग के चांद पर पहुंचने की शताब्दी से पहले लाखों लोगों को ‘ अंतरिक्ष स्टेशनों पर रहते देखना चाहते हैं।

अंतरिक्ष में सैन्य गतिविधि के लिए कोई प्रोटोकॉल या नियम नहीं है। अमेरिका, चीन और भारत तेजी से अपनी विनाशकारी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं। लेजरों के साथ सैन्य उपग्रहों को अंधा कर रहे हैं, पृथ्वी पर उनके संकेतों को जाम कर रहे हैं या यहां तक कि उड़ा देने की ताकत भी हासिल कर ली है। नतीजतन, ब्रह्मांड में मलबा बिखरता जा रहा है। अंतरिक्ष क्षेत्र की संभावनाओं को पूरा करने के लिए व्यवस्था की जरूरत होती है। अंतरिक्ष और चंद्रमा मिल कर पृथ्वी का विस्तार बन सकते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना पृथ्वी की उन समस्याओं को कई गुना बढ़ा सकता है जिनमें सुधार करने की कोशिश देश स्वेच्छा से या अनिच्छा से कर रहे हैं।

Author : के. सिद्धार्थ

Source : Jansatta