हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का औपचारिक उद्घाटन किया। यह परिसर 455 एकड़ में फैला हुआ है और राजगीर में स्थित है, जो पटना से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है। यह परिसर नालंदा के प्राचीन बौद्ध मठ के खंडहरों से मात्र 12 किलोमीटर दूर है, जिसे प्राचीन काल के सबसे महान शिक्षा केंद्रों में से एक माना जाता है।
नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत ही समृद्ध और गौरवशाली है। यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रों में से एक था। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्वविद्यालय लगभग 800 वर्षों तक शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा।
प्रमुख विशेषताएं:
स्थापना और विकास:
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई और यह 12वीं शताब्दी तक सक्रिय रहा।
यह विश्वविद्यालय गुप्त सम्राट कुमारगुप्त द्वारा स्थापित किया गया था और बाद में हर्षवर्धन और पाल वंश के शासकों द्वारा संरक्षित और समर्थित किया गया।
शिक्षा और अनुसंधान:
नालंदा विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी, जिसमें बौद्ध धर्म, वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित और खगोलशास्त्र शामिल थे।
यहां के शिक्षक और विद्वान विश्व प्रसिद्ध थे और यहां शिक्षा प्राप्त करने के लिए विभिन्न देशों से छात्र आते थे।
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विद्यार्थियों की संख्या:
नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक हुआ करते थे। चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया और तुर्किस्तान से विद्यार्थी नालंदा में शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
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संरचना और वास्तुकला:
नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर बहुत ही विस्तृत था, जिसमें कई भवन, विहार, मंदिर और पुस्तकालय थे। इसके पुस्तकालय में हजारों ग्रंथ और पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं, जिन्हें तीन मुख्य पुस्तकालयों में रखा गया था: रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक।
विनाश:
12वीं शताब्दी (1193 ईस्वी) में बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया गया। उसके द्वारा यहां के पुस्तकालयों में आग लगा दी गई और कई विद्वानों की हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि लाइब्रेरी में जो आग लगी थी वह तीन महीने तक जलती रही और इस हमले ने पूरे विश्व को बहुत पीछे धकेल दिया था, क्योंकि जो साहित्य और अन्य ज्ञान था वह पूरी तरह से जलकर राख हो गया था। उस समय विश्व के विख्यात संस्थान जैसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने भी इस घटना को एक निंदनीय घटना कहा था।
उसी पुराने ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में भारत ने कदम उठाया है और हम इसे फिर से विश्व में एक शीर्ष स्तर पर पहुंचाना चाहते हैं।
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