Antarctic Treaty अंटार्कटिक संधि: शांति और समृद्धि की अनमोल धरोहर

अभी हाल ही में, भारत ने अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) के 46वें परामर्शी बैठक और पर्यावरण संरक्षण समिति की 26वीं बैठक की मेजबानी की। यह बैठकें 20 से 30 मई, 2024 के बीच कोच्चि, केरल में आयोजित की गईं। इन बैठकों में अंटार्कटिक के पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान, और प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा की गई।

अंटार्कटिक संधि (Antarctic Treaty) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो अंटार्कटिक महाद्वीप को समर्पित करती है। यह संधि 1 दिसंबर 1959 को हस्ताक्षरित की गई और 23 जून 1961 को लागू हुई।

अंटार्कटिक किसी एक देश के अधीन नहीं है, बल्कि यह संधि के माध्यम से सभी सदस्य देशों द्वारा संयुक्त रूप से प्रशासित और संरक्षित किया जाता है। इस प्रकार, अंटार्कटिक को एक अंतरराष्ट्रीय महाद्वीप माना जाता है, जो शांतिपूर्ण उद्देश्यों और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए समर्पित है।

संधि के प्रमुख बिंदु:

  • शांतिपूर्ण उपयोग: अंटार्कटिका का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। सैन्य गतिविधियों, जैसे हथियार परीक्षण या सैन्य अड्डे, पर प्रतिबंध है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता: संधि सदस्य देशों के वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका में स्वतंत्र अनुसंधान करने की अनुमति है और अनुसंधान के परिणामों को साझा करना अनिवार्य है।
  • पर्यावरण संरक्षण: अंटार्कटिका के पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र की रक्षा करना एक प्रमुख उद्देश्य है।
  • खनन और परमाणु गतिविधियाँ प्रतिबंधित: खनन, परमाणु विस्फोट और परमाणु कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगाया गया है।

संधि में शुरुआत में 12 देश शामिल थे: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्रांस, जापान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। अब तक, 56 देश इस संधि में शामिल हो चुके हैं, जिसमे 29 देशों को सलाहकार दल का दर्जा प्राप्त है जिसमे से भारत भी एक है। भारत अंटार्कटिक संधि में 19 अगस्त 1983 को शामिल हुआ था। इस संधि का सदस्य बनने के बाद भारत ने अंटार्कटिक पर अपनी उपस्थिति स्थापित की और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए विभिन्न मिशन और अनुसंधान स्टेशन स्थापित किए।

भारतीय अनुसंधान स्टेशन: भारत ने अंटार्कटिक में 3 अनुसंधान स्टेशन स्थापित किए हैं:

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  • अंटार्कटिक में दक्षिण गंगोत्री की स्थापना बहुत पहले, 1983 में की गई थी। हालांकि, अब दक्षिण गंगोत्री बर्फ के नीचे डूबी हुई है, लेकिन भारत के दो अन्य स्टेशन, मैत्री और भारती, वर्तमान में संचालित हैं।
    • मैत्री: 1989 में स्थापित, यह स्टेशन भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, और जीवविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए उपयोग किया जाता है।
    • भारती: 2012 में स्थापित, यह स्टेशन समुद्र विज्ञान, जलवायु विज्ञान, और पर्यावरण विज्ञान में अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है।

अब भारत ने 2029 तक अंटार्कटिक में एक नया अनुसंधान स्टेशन, मैत्री-2, बनाने की योजना भी घोषित की है।

निष्कर्ष– जैसे-जैसे अंटार्कटिक संधि प्रणाली परिपक्व होती जा रही है, इससे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के सबसे सफल सेटों में से एक के रूप में पहचाना जाने लगा है, जो शेष विश्व के लिए शांतिपूर्ण सहयोग का एक उदाहरण स्थापित करता है।

एक पर्यावरण व्यवस्था के रूप में यह अद्वितीय है – एक संपूर्ण महाद्वीप, जो अनिवार्य रूप से अबाधित है, संधि पक्षों की प्रतिबद्धता और सहयोग के कारण संरक्षित रहेगा।

अंटार्कटिक संधि: शांति और समृद्धि की अनमोल धरोहर

अभी हाल ही में, भारत ने अंटार्कटिक संधि के 46वें परामर्शी बैठक और पर्यावरण संरक्षण समिति की 26वीं बैठक की मेजबानी की। यह बैठकें 20 से 30 मई, 2024 के बीच कोच्चि, केरल में आयोजित की गईं। इन बैठकों में अंटार्कटिक के पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान, और प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा की गई।

अंटार्कटिक संधि एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो अंटार्कटिक महाद्वीप को समर्पित करती है। यह संधि 1 दिसंबर 1959 को हस्ताक्षरित की गई और 23 जून 1961 को लागू हुई।

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अंटार्कटिक किसी एक देश के अधीन नहीं है, बल्कि यह संधि के माध्यम से सभी सदस्य देशों द्वारा संयुक्त रूप से प्रशासित और संरक्षित किया जाता है। इस प्रकार, अंटार्कटिक को एक अंतरराष्ट्रीय महाद्वीप माना जाता है। इसका उद्देश्य मानव जाति के सभी हितों में यह सुनिश्चित करना है कि अंटार्कटिक हमेशा के लिए विशेष रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाए और अंतरराष्ट्रीय विवाद का स्थल या वस्तु न बने। यह एक वैश्विक उपलब्धि है और 50 से अधिक वर्षों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक रहा है।

संधि के प्रमुख बिंदु:

शांतिपूर्ण उपयोग: अंटार्कटिक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। सैन्य गतिविधियों, जैसे हथियार परीक्षण या सैन्य अड्डे, पर प्रतिबंध है।

वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वतंत्रता: संधि सदस्य देशों के वैज्ञानिकों को अंटार्कटिक में स्वतंत्र अनुसंधान करने की अनुमति है और अनुसंधान के परिणामों को साझा करना अनिवार्य है।

पर्यावरण संरक्षण: अंटार्कटिक के पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र की रक्षा करना एक प्रमुख उद्देश्य है।

खनन और परमाणु गतिविधियाँ प्रतिबंधित: खनन, परमाणु विस्फोट और परमाणु कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगाया गया है।

संधि में शुरुआत में 12 देश शामिल थे: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्रांस, जापान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। अब तक, 56 देश इस संधि में शामिल हो चुके हैं, जिसमें 29 देशों को सलाहकार दल का दर्जा प्राप्त है, जिसमें से भारत भी एक है। भारत अंटार्कटिक संधि में 19 अगस्त 1983 को शामिल हुआ था।

इस संधि का सदस्य बनने के बाद भारत ने अंटार्कटिक पर अपनी उपस्थिति स्थापित की और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए विभिन्न मिशन और अनुसंधान स्टेशन स्थापित किए। 2008 में, भारत ने अनुसंधान के लिए सागर निधि की स्थापना की। यह एक बर्फ श्रेणी का जहाज है, जो 40 सेमी गहराई की पतली बर्फ को काट सकता है और यह अंटार्कटिक जल में नेविगेट करने वाला पहला भारतीय जहाज है।

भारतीय अनुसंधान स्टेशन: भारत ने अंटार्कटिक में 3 अनुसंधान स्टेशन स्थापित किए हैं:

अंटार्कटिक में दक्षिण गंगोत्री की स्थापना बहुत पहले, 1983 में की गई थी। हालांकि, अब दक्षिण गंगोत्री बर्फ के नीचे डूबी हुई है, लेकिन भारत के दो अन्य स्टेशन, मैत्री और भारती, वर्तमान में संचालित हैं।

मैत्री: 1989 में स्थापित, यह स्टेशन भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, और जीवविज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए उपयोग किया जाता है।

भारती: 2012 में स्थापित, यह स्टेशन समुद्र विज्ञान, जलवायु विज्ञान, और पर्यावरण विज्ञान में अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है।

अब भारत ने 2029 तक अंटार्कटिक में एक नया अनुसंधान स्टेशन, मैत्री-2, बनाने की योजना भी घोषित की है।

निष्कर्ष के रूप में, जैसे-जैसे अंटार्कटिक संधि प्रणाली परिपक्व होती जा रही है, इसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के सबसे सफल सेटों में से एक के रूप में पहचाना जाने लगा है, जो शेष विश्व के लिए शांतिपूर्ण सहयोग का एक उदाहरण स्थापित करता है। एक पर्यावरण व्यवस्था के रूप में यह अद्वितीय है – एक संपूर्ण महाद्वीप, जो अनिवार्य रूप से अबाधित है, संधि पक्षों की प्रतिबद्धता और सहयोग के कारण संरक्षित रहेगा।

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