CLOUD BURST – बादल फटने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? …..के. सिद्धार्थ सर

Cloud Burst | बादल फटने की बढती प्रवृतियां | बादल फटना वृष्टि प्रस्फोट  वर्षा ऋतू में या मानसूनी सीजन में पहाड़ी राज्यों में आमतौर पर बादल फटने की खबरें आती है। लेकिन लगभग एक ही समय में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बादल फटे।

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हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटना धर्मशाला, कांगड़ा और कुल्लू में बादल फटने की इस घटना के साथ फ्लैश फ्लड या तेज धारा वाली बढ़ का सामना भी कर रहे हैं। हिमाचल के धर्मशाला में मानसून (Monsoon) का रौद्र रूप देखने को मिला है. पर्यटन क्षेत्र भागसू में बादल फटने (Cloud burst) से अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) आ गई. देखते ही देखते एक छोटे से नाले ने नदी का रूप धारण कर लिया.

बाढ़ से भागसू का नाला ओवरफ्लो हो गया. इस नाले में उफान आने के कारण अच्छा ख़ासा नुकसान हुआ। ऐसी स्थिति हिमाचल प्रदेश के कई अन्य भागों में भी देखने को मिली।

पिछले कई दिनों से यहां के लोग भी गर्मी से बेहाल थे. हालांकि, लोगों को गर्मी से राहत तो मिली  लेकिन इस अत्यंत भारी बारिश ने ख़ुशी के समय को मातम में बदल  दिया

बादल फटना जिसे हिंदी में वृष्टि प्रस्फोट कहते हैं, एक अचानक आयी हुई घटना है जिसमे गंभीर, भारी बारिश और सीमित स्थान पर बहुत ही अधिक तीव्रता की अत्यधिक मात्रा में वर्षा होती है, जिस्मे कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं और और गरज के निरंतर भारी बौछारें भी पड़ती हैं जो सामान्य रूप से कुछ मिनटों और घंटो से अधिक नहीं रहती  है।

बोलचाल की भाषा में, बादल फटना शब्द का उपयोग किसी भी अचानक भारी, संक्षिप्त और आमतौर पर अप्रत्याशित वर्षा का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है। 100 मिमी (3.97 इंच) प्रति घंटे के बराबर या उससे अधिक वर्षा की दर बादल का फटना है।  बादल फटने के दौरान कुछ ही मिनटों में 20 मिमी से अधिक बारिश हो सकती है।

बादल फटने की एक बहुत ही विशिष्ट परिभाषा होती है: यदि लगभग 10 किमी x 10 किमी क्षेत्र में लगभग 10 सेमी या प्रति घंटे से अधिक की वर्षा दर्ज की जाती है, तो इसे बादल फटने की घटना के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। और इस परिभाषा के अनुसार आधे घंटे में 5 सेंटीमीटर बारिश को भी बादल फटने की श्रेणी में रखा जाएगा। हाँ, यह भारतीय परिस्थितियों के लिए एक विसंगति ही है।

बादल फटना मैदानी इलाकों, रेगिस्तानों और पहाड़ी क्षेत्रों में हो सकता है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में उनके होने की अधिक संभावना अधिक होती है।

बादल फटना तब होता है जब हवा का बहुत गर्म प्रवाह ऊपर की ओर तेज गति से जाने के कारण संतृप्त बादल बनाते हैं लेकिन जो बारिश पैदा करने में असमर्थ होते हैं। वर्षा की बूँदें नीचे गिरने की बजाय वायु धारा द्वारा ऊपर की ओर ले जाती हैं।

ऊपर जाने के क्रम में जैसे-जैसे बादल कम तापमान वाले क्षेत्र में ऊपर उठते हैं, नई बूंदें बनती हैं और मौजूदा बारिश की बूंदों का आकार बढ़ जाता है। एक बिंदु के बाद, बारिश की बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि बादल में वो बुँदे टिकी नहीं रह पातीं  और वे एक साथ अचानक गिरना शुरू कर देती हैं।

सामान्य परिस्थितियों में अवरोध, जैसे किसी पर्वत की उपस्थिति, बादल फटने की घटनाओं को बढ़ा देती हैं, उन्हें और तेज कर देती हैं।

हाल ही में हिमालय में बादल फटने सहित अधिकांश बादल फटने की घटनाएं इसी कारण से हुई हैं। यहाँ बादल फटना तब हुआ जब गर्म नम और जलवाष्प से लदी हवाएं हिमालय की ठंडी हवाओं के साथ मिल गयीं जिसके परिणामस्वरूप अचानक संघनन हुआ।

पहाड़ी इलाके गर्म हवा की धाराओं को लंबवत ऊपर की ओर बढ़ने में सहायता करते हैं, और यह दो तरह से होता है- पानी से भरी हवाओं को गीली तराई क्षेत्र से अधिक नमी अवशोषित करने की अनुमति देकर और फिर पानी से भरी हवाओं को हिमालय की ढलान के साथ उठने की अनुमति देकर।

अत्यधिक वर्षा का ऐसा तंत्र हिमालयी क्षेत्र के लिए असामान्य नहीं है, न ही इस प्रकार की बाढ़ असामान्य है क्योंकि इस तरह की घटना हिमालय में हमेशा एक या दूसरे क्षेत्र में होती ही रहती  हैं।

यह आवश्यक नहीं है कि बादल का फटना तभी होगा जब बादल पहाड़ जैसे ठोस पिंड टकराएंगे ।

ऐसा ही एक बादल हिमालय क्षेत्र में तब फूटा जब २०१३ में हिमालय की ढलान के साथ मानसूनी हवाएँ ऊपर उठ रही थीं। जब मानसून की धाराएँ दक्षिण से उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ती हैं तो वह हिमालय के दक्षिणी ढाल के सहारे ऊपर उठती हैं और जेट धारा द्वारा लाये गए पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत में पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ आये थे । मानसून हवाएं और निम्न दबाव प्रणाली पहले ही बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ चुकी थी और पश्चिमी विक्षोभ हिमालय के ऊपर अपने आप को स्थापित कर गोल गोल घूमते हुए ऊपर की ओर जा रहा था ।

जब मानसून हवाओं ने जेट धारा द्वारा लाये हुए पछुआ हवाओं का सामना किया, तो यह नम हवाएं गोल गोल तेज गति से ऊपर उठाने लगीं जैसे जेट धारा ने उसे चूस लिए हो, । पछुआ हवाएं वस्तुतः मानसून प्रणाली से जुड़ी हुई थीं, दोनों प्रणालियों ने एक-दूसरे को नमी प्रदान करने के कारण गहन अंतःक्रिया को जन्म दिया।  मानसून के साथ-साथ पश्चिमी हवाओं के असामान्य संयोजन के कारण नमी से लदी हवा का तीव्र उत्थान हुआ, जो ऊपर उठती जेट धाराओं द्वारा चूसा गया था, जिसके परिणामस्वरूप बहुत ही प्रलयंकारी बारिश हुई, जिससे बादल फट गए,  और यही जिससे जून 2013 में अत्यधिक अपवाह और भूस्खलन बाढ़ का कारण बना।

भारत के मरुस्थलीय भागों में बादल फटने की घटना नम हवा के स्थानीयकृत ताप द्वारा सहायता प्राप्त संवहन में वृद्धि या उनके उत्थान के कारण होता है, और यही कारण है की रेगिस्तान में भी बादल फट सकते हैं।

2006 की बाड़मेर एक ऐसा ही मामला था जो असामान्य रूप से भारी बारिश के कारण उत्पन्न हुआ था। 2020 की बांसवाड़ा बाढ़ एक और उदाहरण जोड़ती है और इन सबके  ऊपर 2010 में आयी लेह की बाढ़ है। इसका अर्थ यह है की मरुस्थलीय भागों के ऊपर नम हवाएं थीं और तपती भूमि ने इन्हे गर्म कर तेजी से उठा दिया तो वृष्टि प्रस्फोट का कारण बना।

बादल फटने पर और इसके आंकड़ों के ऊपर सूचनाकी कमी है; इसके अलावा, चूंकि उनमें से केवल कुछ ही बादल फटने की घटनाएं गिनी जाती हैं – केवल वह जो मृत्यु और विनाश का कारण बनते हैं – तो सटीकता की भी समस्या है। लेकिन यह बहुत स्पष्ट है कि पिछले कुछ दशकों में इस तरह की अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। तापमान में उतार-चढ़ाव को एक प्रवृत्ति के रूप में ध्यान में रखते हुए, बादल फटने की घटनाओं में अभी और भी वृद्धि हो सकती है।

वृष्टि प्रस्फोट के पूर्वानुमान की कठिनाई इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि वे यह बहुत ही छोटे क्षेत्र में होते हैं। साथ ही इनमे कई मौसम संबंधी स्थितियों का संगम होता है, उनका मिलाप और के अभिसरण होता है और इस कारण भारी वर्षा की भविष्यवाणी करना आसान नहीं होता।

परन्तु डॉपलर राडार के माध्यम से बहुत छोटे क्षेत्र का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इनके माध्यम से बादल फटने की संभावना का लगभग छह घंटे पहले, कभी-कभी तो 12-14 घंटे पहले भी पूर्वानुमान लगाना संभव है।

बादल फटने का प्रभाव अभी हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, और उत्तरखंड में देखा गया।

बारिश से लोगों की मौत नहीं होती है, हालांकि कभी-कभी बारिश की बूंदें इतनी बड़ी होती हैं कि लगातार बारिश में लोगों को चोट पहुंचाती हैं। परन्तु  ऐसी भारी वर्षा का ही परिणाम है, जो पहाड़ी इलाकों में, जो मृत्यु और विनाश का कारण बनती है।

यह प्रभाव अचानक आई बाढ़ से सम्बंधित है।  इतनी तेज बारिश में नदी नालें तुरंत भर जाते हैं और उफान पर आ जाते हैं। यह तेज गति से बहता हुआ पानी अपने साथ मलबा पत्थर सब बहा कर ले जा सकने की क्षमता रखता है। तेज गति का शक्तिशाली प्रवाह इन्ही मलबों और ढालों के सहारे पंक प्रवाह (मडफ्लो) और भूस्खलन लाता है, और जहाँ भी मौका मिलता है वहां ज़मीन के भीतर से खोखला कर उसे धंसा भी देता है (लैंड कैविंग) . यह कहने की ज़रुरत ही नहीं है मकान और प्रतिष्ठान भी इसमें बह जाते हैं। वस्तुतः अभी हिमाचल, कश्मीर और उत्तराखंड में यही हुआ।

आगे आने वाले समय में बादल फटने की घटना  के कारण ही सिर्फ बढ़, भूस्खलन, पंक प्रवाह नहीं होगा।  आज पर्वतीय क्षेत्र पूरी तरह अस्थिर हो चुके हैं और वहां रहने वाले तो नहीं लेकिन दिल्ली में बैठे जो लोग बिना समस्या जाने नीतियां बनाते हैं, और इन्हे भावना विहीन अहंकार में चूर बाबुओं को लागु करने के लिए दे देते हैं तो यह सिर्फ समय की बात है की हमें चार धाम बनाने का, सुरंगे बनाने का, ओक  की जगह पाइन  वृक्ष लगाने का, भूमिउपयोग बदलने का और बिना सोचे समझे सड़के बनाने का फल एक और केदारनाथ जैसी त्रासदी के रूप में मिलेगा ही मिलेगा। समय इसे आज रोक सकता है आगे नहीं रोक पायेगा।

के. सिद्धार्थ सर | www.ksiddhartha.com | भू-वैज्ञानिक  रणनीतिक विचारक, सरकारों के सलाहकार, ज्ञान व धारणा प्रबंधन सलाहकार लेखक और शिक्षाविद,

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