भारत की आंतरिक सुरक्षा – अर्थ, चुनौतियां एवं उभरती तस्वीर
जैसे जैसे भारत तरक्की की ऊँचाईयों को छू रहा है, और आर्थिक विकास में निरंतर आगे बढ़ रहा है, उसमे उस देश के लोगों में उतनी ही आपस की एकजुटता, प्रेम एवं भाईचारा में कमी होते नज़र आ रही है, उतना ही वैमनस्य बढ़ रहा उतना ही भारत भीतर से खोखला होता जा रहा है।
भारत के भीतर ही रहने वाले लोग, कुछ बुद्धिजीवी, कुछ बाहरी तत्व, कुछ वो सारे तत्व जिन्होंने भारत को कभी अपना माना ही नही, कुछ इसका इतिहास, कुछ इतिहास की त्रुटियां, 70 वर्षों तक भारतीय अखंडता की अनदेखी, social media का दुरुपयोग, इन सभी तत्वों के मिले जुले स्वरूप ने भारत को आंतरिक दृष्टि से असुरक्षित ही किया है। बाहरी घटनाओं से हमले के खतरे तो हैं ही पर उसकी तुलना में आंतरिक सुरक्षा एक उससे भी गंभीर मसला हो गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र – भारत जहां हर पचास किलोमीटर की दूरी पर भाषा, जाति, पंथ, लोगों का खान पान, रहन सहन सब बदल जाता है, ऐसी विभिन्नताओ के बीच सुरक्षा रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होने के साथ साथ कठिन भी हो जाता है।
इस वीडियो में डॉ विक्रम सिंह – IPS (पूर्व डीजीपी-उत्तर प्रदेश एवं वर्तमान में नोएडा अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय के कुलपति) के साथ एक चर्चा में श्री के. सिद्धार्थ (सामरिक सलाहकार, एवं भूवैज्ञानिक).