भारत के बिना एशिया की प्रगति अधूरी

भारत के बिना 21वीं सदी एशिया की नहीं बनेगी
तमिलनाडु के महाबलिपुरम में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी की शिखर बैठक 11 अक्टूबर को हो रही है।
दोनों देशों के नेताओं के बीच व्यापार, निवेश, सुरक्षा और सीमा जैसे अहम मुद्दों पर बातचीत होगी।
उधर चीनी मीडिया ने कहा है कि दोनों देश मिलकर ही 21वीं सदी को एशिया का बना सकते हैं।
एशिया के कई नेता और रणनीतिकार कहते हैं कि 19वीं सदी यूरोप की थी, 20वीं सदी अमेरिका की और अब 21वीं सदी एशिया की होगी।
दोनों नेताओं के बीच इस दौरान रीजनल कॉम्प्रीहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (RCEP) पर भी बातचीत हो सकती है।
RCEP में आसियान के 10 देशों के अलावा छह अन्य देश- भारत, चीन, जापान, दक्ष‍िण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
भारत-चीन के बीच मौजूदा व्यापार करीब 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।
यह व्यापार चीन के पक्ष में है, इसलिए भारत को इसका घाटा उठाना पड़ता है।
भारत दक्ष‍िण एशिया में चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है।
भारत में 1,000 से ज्यादा चीनी कंपनियां कारोबार करती हैं।
दोनों यदि चीन-भारत संबंध अच्छे नहीं रहते हैं तो फिर एशिया का उदय असंभव है।
अगर सीमा विवाद निपट जाए तो यह दुनिया में एक मिसाल बन जाएगा।
महाबलीपुरम का चीन के साथ ऐतिहासिक व्यापारिक रिश्ता रहा है।
महाबलीपुरम पर तीसरी से नौंवी सदी तक शासन करने वाले पल्लव शासकों ने अपने दूत चीन भेजे थे।
पल्लव राजाओं के चीन के साथ व्यापारिक और प्रतिरक्षा के रिश्ते थे।
चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपने यात्रा दस्तावेजों में इस बंदरगाह का जिक्र किया है।
तमिलनाडु के महाबलीपुरम में सप्त पगोडा के नाम से प्रसिद्ध यह विरासत 7वीं सदी में में बने थे।
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