देश के सामाजिक – आर्थिक विकास के लिए सुदृढ़ कानून व्यवस्था और समाज में शांति अत्यंत आवश्यक है। कानून व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायित्व पुलिस के कंधों पर होता है। परन्तु पुलिस पर अत्यधिक काम का दबाव और अपर्याप्त आरक्षी संख्या इसके आड़े आ जाती है। इसी के मद्देनजर स्वतंत्रता के पश्चात से ही भारत में पुलिस को अधिकाधिक सुदृढ़, सशक्त और चुस्त दुरुस्त बनाने पर बल दिया गया। आरंभ से ही सरकारों ने पुलिस सुधारों को अपने एजेंडे में शामिल रखा, परन्तु आज़ादी के सत्तर साल बीत जाने के बाद भी पुलिस का चेहरा आम जनता को मानवीय नहीं नजर आता। पुलिस पर राजनीतीकरण और अपराधीकरण के आरोप लगते रहे हैं।
दूसरी ओर 130 करोड़ की आबादी वाले देश में पुलिस को अत्याधुनिक हथियार, तीव्रगामी वाहन और अन्य प्रकार के आधुनिकरण प्रयासों के लिए धन की कमी भी आड़े आ जाती है।
परन्तु इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि भारत को राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ना है तो एक मजबूत पुलिस तंत्र का मौजूद होना अनिवार्य है