असमानता ( Inequality): भारत विभिन्नता में एकता का देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार के सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज, बोली, भाषा, लिंग, जाति पाई जाती है।
यही विभिन्नता भारत को जहाँ विशेष बनाता है वहीं भारत की सबसे बड़ी समस्या का कारण भी बन जा रही है। वर्त्तमान में यह असमानता इतनी बढ़ गई है कि यह देश की सबसे बड़ी समस्या है। सामाजिक असमानता, आर्थिक असमानता, शैक्षिक असमानता, क्षेत्रीय असमानता, धार्मिक असमानता और औद्योगिक असमानता ही देश को विकसित बनाने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
सामाजिक असमानता के कारण ही आज समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, इंसानियत और नैतिकता ख़त्म होता जा रहा है। व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए समाज को धर्म, रिश्तेदारी, प्रतिष्ठा, जातीयता, लिंग आदि में बाँटना जायज नहीं है।
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आर्थिक असमानता के कारण आज समाज में अमीरों और अरबपतियों की संख्याँ तो बढ़ रही है परन्तु समाज के गरीब लोग या तो जिस हाल में थे आज भी वही पे खड़े हैं या नहीं तो और गरीब ही होते जा रहे हैं।आर्थिक न्याय ही सामाजिक न्याय की नींव है।आर्थिक न्याय के बिना हम सामाजिक न्याय का कल्पना भी नहीं कर सकते।यदि वास्तव में हम सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं तो हमें आर्थिक न्याय को मजबूत बनाना ही होगा।
शैक्षिक असमानता के कारण ही हम समाज में वंचित वर्गों को अच्छी शिक्षा दे पाने में असफल साबित हो रहे हैं। हम जानते हैं कि शिक्षा के बिना किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र का विकास हो ही नहीं सकता। शिक्षा ऐसी हो जो हमें सोचना सिखाये, कर्त्तव्य और अधिकार का बोध कराये, हमें हमारा हक़ दिलाये और हमें समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार बनाये। इस प्रकार की शिक्षा हम नहीं दे पा रहे हैं।
धार्मिक असमानता की बात करें तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहाँ हर धर्म को अपनी स्वंतंत्रता है परन्तु धर्म को लेकर लोग आपस मे लड़ते है वे धर्म की मूल बातो को समझ ही नही पाते हैं। धर्म जोड़ने का कार्य करता है, प्यार सिखाता है, जीने का तरीका सिखाता है। यहाँ धर्म का असली मतलब किसी को समझ ही नहीं आता है।
क्षेत्रीय असमानता के कारण ही आज हम देश के सभी भागों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों को, विकास के मुख्य धारा से जोड़ने में विफल साबित हो रहे हैं। भारत को विकसित देशों के श्रेणी में लाने के लिए हमें सुदूरवर्ती गाँवों में विकास के किरणों को पहुँचाना होगा। आखिर हम दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, अहमदाबाद, पुणे और हैदराबाद के अनुपात में अन्य शहरों और गाँवों का विकास करने में असफल क्यों साबित हो रहे हैं?
हमें इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा।यदि हम इन्हीं शहरों जैसे और शहर बनाने में कामयाब होते हैं तो न सिर्फ इन शहरों पर से लोगों का दवाब कम करने में कामयाब होंगे बल्कि हमें इस तरह के और कई अन्य शहर भी विकसित करने में सफलता मिलेगी जो क्षेत्रीय असमानता को ख़त्म करने में मील का पत्थर साबित होगा।
औद्योगिक असमानता के कारण ही आज हमें कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पर रहा है। ऐसा देखा जा रहा है कि जिस शहर में पहले से ही बहुत सारे उद्योग-धंधे लगे हुए हैं। आज भी उन्ही जगहों पर नए-नए उद्योग और कल-कारखाने लगते जा रहे हैं। हमें नए-नए औद्योगिक शहर बसाने की जरुरत है।इसके दो फायदे होंगे।एक तो पुराने औद्योगिक शहरों पर जो लोगों का बोझ बढ़ता जा रहा है वह कम होगा और दूसरा हम नए औद्योगिक शहर बसाने में भी कामयाब होंगे।
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इसी तरह बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, रेल और कृषि आदि अनेक क्षेत्रों में असमानताओं से आम जनों को जूझना पर रहा है। कहीं चौबीसों घंटे बिजली, तो कहीं आज भी लोग लालटेन और ढिबरी युग में जीने को विवश हैं।
कहीं पानी ही पानी तो कहीं पानी के लिए हाहाकार,कहीं पक्की सड़कों की भरमार तो कहीं कच्ची सड़क भी नहीं,कहीं बड़े-बड़े अस्पताल तो कहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं, कहीं रेलवे लाइनों की जाल तो कहीं रेलवे का घोर अभाव है, कहीं किसानों के लिए आधुनिक संसाधनों की भरमार तो कहीं किसान बेहाल हैं। यह असमानता उस घुन की तरह है जो अंदर ही अंदर समाज को खोखला बनाता जा रहा है। हमें हर हाल में इस असमानता को मिटाना ही होगा।
असमानताओं के परिणाम
असमानताएं सामाजिक समूहों के बीच सामाजिक संघर्ष को उत्पन्न करती है, उदाहरण-जाट, मराठा, पटेल, जैसे जाति-समूह आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कथित असमानता के कारण इस तरह के हितों का टकराव जातिगत समूहों के विरोध के बीच हिंसक टकराव पैदा करता है।
जातीय समूहों के बीच मतभेदों का नेतृत्व किया गया है अलग-अलग राज्यों या स्वायत्त क्षेत्रों या भारत से एकमुश्त अलगाव के लिए विभिन्न जातीय आंदोलनों होने लगते है, जैसे-नॉर्थ ईस्ट में इस तरह के कई जातीय आंदोलन हुए हैं। असमानता धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के बीच बहिष्कार की भावना पैदा करती है। इससे मुख्यधारा में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।आर्थिक असमानता सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के लिए हानिकारक है।
असमानताओं से निपटने के उपाय
मौलिक अधिकारों में निहित समानता की संवैधानिक गारंटी। अनुच्छेद 14, 15 और 16 संवैधानिक अधिकार समानता की एक योजना का हिस्सा हैं। अनुच्छेद 15 और 16 समानता की गारंटी की घटनाएं हैं, और अनुच्छेद 14 को प्रभावी बनाता है। सिविल सोसाइटी को पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित और दमित समूहों के लिए एक बड़ी आवाज प्रदान करना, जिसमें इन समूहों के साथ संघों और संघ जैसे नागरिक समाज समूहों को सक्षम करना शामिल है।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को उद्यमी बनने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं को वित्त पोषण बढ़ाकर अपनी पहुंच को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
सशक्तिकरण, लैंगिक समानता की नीतियों जैसे विधायकों में सीटों के आरक्षण की सकारात्मक कार्रवाई, शहरी और ग्रामीण दोनों स्थानों पर स्थानीय स्व-आरक्षण में वृद्धि सभी राज्यों में 50% तक का स्तर, समान पारिश्रमिक अधिनियम का कड़ाई से कार्यान्वयन, वेतन अंतर को दूर करने के लिए, शिक्षा के पाठ्यक्रम को लिंग के प्रति संवेदनशील बनाने, महिलाओं के अधिकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं के माध्यम से सामाजिक मानदंडों को बदलने, आदि धार्मिक अल्पसंख्यकों का समावेश।
आर्थिक नीतियाँ जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ, रोजगार गारंटी योजनाओं जैसी सार्वजनिक वित्त पोषित उच्च गुणवत्ता सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करके असमानता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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