Inheritance | युवा पीढ़ी किस प्रकार की दुनिया को विरासत में पाएंगे ?
आज हम कैसे विश्व में जी रहे हैं और किस प्रकार के विश्व की ओर अग्रसर हैं? आगे आने वाली पीढ़ी किस प्रकार के विश्व को विरासत में पाएगी? इसे जानने के लिए हम कुछ वर्ष पीछे चलते हैं। ज्यादा नहीं, २०-३० वर्ष पीछे चलते हैं तो पता चलेगा कि इन वर्षों में विश्व में प्रत्येक स्तर पर कितना बदलाव आ गया है और बदलाव की गति क्रमशः तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है।
ये बदलाव सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक, पर्यावरणीय, आर्थिक, भौगोलिक आदि सभी क्षेत्रों में दिखता है, जिसके फलस्वरूप लोगों का खान पान, रहन सहन, वेश भूषा, आचार व्यवहार, मेल मिलाप का तरीक़ा, जीवन स्तर, दिनचर्या, मानसिक स्थिति सभी परिवर्तित हुए हैं।
इन सभी क्षेत्रों में बदलाव के लिए कुछ चुनिंदा कारण जिम्मेदार हैं; जैसे- औद्योगीकरण, नगरीकरण, एकल परिवारों का उदय, भूमंडलीकरण, आर्थिक विकास, तकनीकी विकास, पर्यावरण परिवर्तन आदि। अब हम इन परिवर्तनों के आलोक में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों की कल्पना कर सकते हैं, जिनके सकारात्मक एवम् नकारात्मक दोनों पक्ष दृष्टिगोचर होते हैं।
विरासत (inheritance)
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भविष्य की कल्पना करते हुए हम देखते हैं कि हमने ऊर्जा प्राप्ति के लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा आदि का व्यापक प्रयोग सीख लिया है; आधुनिक से आधुनिकतम हथियार, मिसाइल, पनडुब्बी, वायुयान आदि का अविष्कार कर चुके हैं;
खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए जेनेटिकली मोडिफाईड फसलों का व्यापक प्रयोग करने लगे हैं; प्लास्टिक के स्थान पर नई तकनीक से निर्मित बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का प्रयोग होने लगा है; जल, थल, वायु तीनों में चलने वाले वाहनों का प्रयोग आम हो गया है, जो सौर ऊर्जा और विद्युत ऊर्जा से चलते हैं।
इसके साथ ही कई विरोधाभासी आयाम भी दृष्टिगत होते हैं। एक ओर सोशल मीडिया में मित्रों की संख्या बढ़ गई है, किन्तु वास्तविक मित्र सीमित से नगण्य तक पहुंच गए हैं; सम्पूर्ण विश्व की खबर हमारे पास है, किन्तु पड़ोसियों से अजनबी हो गए हैं; उच्च से उच्चतम तकनीकें हमारे पास आ गई हैं, किन्तु पर्यावरण दूर होता जा रहा है;
हमने मंगल में निवास का स्थान खोज लिया है, किन्तु पृथ्वी पर जनसंख्या वृद्धि के कारण निवास स्थान सीमित हो गया है; हम पृथ्वी में कहीं भी कुछ ही मिनटों में पहुंच सकते हैं, किन्तु पड़ोस में जाने का भी समय नहीं है; प्रगतिवादी मानसिकता ने रूढ़िवादिता को समाप्त कर दिया है, किन्तु अपने सामाजिक मूल्यों से बहुत दूर हो गए हैं; विश्व परिवार से जुड़ गए हैं, किन्तु अपने परिवार से दूर हो गए हैं;
दुनिया की भीड़ में रहते हुए मानसिक तौर पर एकल हो गए हैं; भौतिकता के पीछे भागते भागते भावनाओं से विरक्त हो गए हैं; विश्व भर के व्यंजनों का स्वाद हमें पता चल गया है, किन्तु पारंपरिक भोजन का स्वाद हम भूल चुके हैं; रोगों के इलाज व चिकित्सकीय खोजों में बहुत आगे आ गए हैं, किन्तु नए नए रोग सामने आते जा रहे हैं।
इस प्रकार भविष्य में हमें समृद्धि तो दिखती है, किन्तु ऐसी समृद्धि जिसमें सुकून कहीं खोता जा रहा है, स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है और भावनाएं गौण होती जा रही हैं।
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