अज्ञात की सैर | Tourism
अंग्रेजी और उर्दू की दो उक्तियाँ हैं- “Life is a book and if you don’t travel, you read just one page.”
“सैर कर दुनिया की काफ़िर जिंदगानी फिर कहाँ, जिंदगानी गर रही तो ये जवानी फ़िर कहाँ।” पर्यटन (Tourism) न करने वाला व्यक्ति ‘कूप मण्डूक’ ही रह जाता है।
हमारा विश्व विविधताओं से भरा हुआ है और उसी तरह विविधताओं से भरा हुआ है हमारा भारत देश। हमारे देश में हिमालय, सह्याद्रि, विन्ध्य, अरावली, नीलगिरि जैसे अनेक पर्वत; मालवा, दक्कन, मैसूर जैसे अनेक पठार; कश्मीर, देहरादून, शिमला जैसी अनेक मनोरम घाटियाँ; गंगोत्री, यमुनोत्री, सियाचिन जैसे अनेक ग्लेशियर; थार का मरुस्थल; पश्चिमी घाट की जैव विविधता; समुद्र के किनारे अनेकों बीच (beach), नदियों के उदगम, जल प्रपात, सिंचित क्षेत्र, झीलें तथा डेल्टा एवं ज्वारनदमुख आदि सभी दृश्य दिखाई देते हैं।
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देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र तो और अधिक विविधताओं से परिपूर्ण पर्यटन (Tourism) क्षेत्र है।
हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र, मेघालय का पठारी क्षेत्र, जम्मू के ग्लेशियर, ब्रह्मपुत्र नदी का मैदानी क्षेत्र, माजुली जैसा नदी द्वीप, मणिपुर का झूलता हुआ नेशनल पार्क, मेघालय का सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र तथा विविध आदिम संस्कृतियों से समृद्ध पूर्वोत्तर अपने आप में अद्भुत है।इन विविधताओं को देखना स्वयं में मनोरम होता है। इसके साथ ही भ्रमण से हमें विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों, रहन-सहन, व्यवहारों, परम्पराओं, आदि का ज्ञान होता है। वास्तव में यह व्यक्तित्व के विकास में योगदान करने के साथ-साथ हमें अधिक जागरूक, अधिक संवेदनशील एवं अधिक परिपक्व बनाता है।
पर्यटन से पर्यटक का विकास तो होता ही है, साथ ही यह पर्यटन क्षेत्र एवं राष्ट्र के विकास में भी योगदान देता है। किसी स्थान पर पर्यटन का विकास होने से वहां के लोगों को रोजगार की प्राप्ति होती है, इससे व्यापार, परिवहन, सेवा क्षेत्र, स्थानीय उद्योग आदि सभी विकसित होते हैं। इनके विकास से समाज एवं देश का विकास होता है, तथा देश का विकास होने से पर्यटन (Tourism) में वृद्धि होती है। इस प्रकार ये एक चक्रीय प्रक्रम है।
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किन्तु, इस चक्रीय प्रक्रम को कहीं से तो प्रारंभ करना ही होगा। इसके लिए सरकार को अवसंरचनात्मक एवं आधारभूत विकास, क़ानून एवं व्यवस्था, पर्यटकों की सुरक्षा, परिवहन की सुविधा आदि का विकास करना होगा। इसके साथ-साथ लोगों को पर्यटन (Tourism)के लिए प्रोत्साहित भी करना होगा और लोगों में पर्यटक-प्रवृत्ति का विकास भी करना होगा, जिसके लिए प्रचार के विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जैसे- रेडियो, टेलीवीजन, समाचार पत्रों, होर्डिंग, बोर्डिंग, रैलियों, आदि में।
इस प्रकार पर्यटन का विकास व्यक्ति के व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाने के साथ साथ राष्ट्रीय विकास में ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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