अपेक्षित समर्थन के अभाव में फिजियोथेरेपी जैसी प्रभावी प्रणाली का वांछित लाभ नहीं मिल सका
चिकित्सकों की कमी देश में एक प्रभावी स्वास्थ्य तंत्र की राह में बड़ी बाधा है। ऐसे में मोदी सरकार ने डेंटल और आयुष चिकित्सकों को एक ब्रिज कोर्स के साथ एलोपैथिक परामर्श का रास्ता खोला है। हालांकि एलोपैथ लॉबी ने इसका कड़ा विरोध किया जा रहा है। वहीं देश में चिकित्सकों की उपलब्धता और आवश्यकता के आंकड़े बताते हैं कि आगामी दो दशकों में भी मानक उपलब्धता के आसार नहीं है। लोकसभा की प्राक्कलन समिति ने इस समस्या के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण अनुशंसा की है। इसके अंतर्गत ‘फिजियोथेरेपी’ को उपचार की अहम प्रणाली के तौर पर अपनाने की बात है। फिलहाल देश में इस विधा का केंद्रीय नियामक संस्थान भी नहीं है। गत सप्ताह आए बजट में र्नंिसग के लिए नए मिडवाइफरी बिल का जिक्र तो हुआ, पर फिजियोथेरेपी को लेकर कोई उल्लेख नहीं हुआ जबकि देश में स्नातक, परास्नातक और पीएचडी तक इसकी पढ़ाई कराई जाती है।
प्राक्कलन समिति ने फिजियोथेरेपी को स्वतंत्र विभाग के रूप में मान्यता देने पर जोर दिया
प्राक्कलन समिति ने फिजियोथेरेपी को एक पूर्णत: विकसित एवं स्वतंत्र विभाग के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया है। समिति के अनुसार फिजियोथेरेपी प्रामाणिक चिकित्सा प्रणाली है जिसका उपयोग पीडियाट्रिक्स से लेकर जेरियाट्रिक्स तक कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह र्कािडयोवेस्कुलर रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनेरी डिसीज (सीओपीडी), मधुमेह, ऑस्टोपायरोसिस, मोटापा और हाइपरटेंशन आदि के उपचार में अहम भूमिका निभा सकती है। समिति ने इस पर नाराजगी व्यक्त की है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पास फिजियोथेरेपी शिक्षा और सार्वजनिक आरोग्य में इसकी भूमिका से जुड़ी कोई प्रामाणिक जानकारी ही नहीं है। समिति के अनुसार फिजियोथेरेपी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक नया आयाम प्रदान कर सकती है। समिति की राय है कि फिजियोथेरेपी को आर्थोपेडिक से विलग कर स्वतंत्र विषय के रूप में उभारना चाहिए। साथ ही प्रभावी फिजियोथेरेपी सेवाओं के लिए उपकरणों के अलावा उपचारात्मक प्रक्रिया के आधुनिकीकरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता को समिति ने रेखांकित किया है। पहली बार किसी संसदीय समिति ने यह सिफारिश की है कि अंग्र्रेजी दवाओं पर निर्भरता घटाने के लिए प्राथमिक उपचार के रूप में फिजियोथेरेपी विकल्प अपनाने के अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि यह एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप आकार ले सके।
कुछ राज्यों में फिजियोथेरेपी के जरिये प्राथमिक चिकित्सा शुरू हुई
कुछ राज्यों में फिजियोथेरेपी के जरिये प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने पर कार्य शुरू हो गया है। इस दिशा में झारखंड, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में फिजियोथेरेपी परिषदों का गठन कर राज्य में उपलब्ध फिजियोथेरपिस्ट का उपयोग सरकारी अस्पतालों में किया जा रहा है। हालांकि इसमें मेडिकल कमीशन या प्राकृतिक चिकित्सा कमीशन जैसी किसी केंद्रीय नियामक संस्था का अभी भी अभाव है। इस कारण यह आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं कि भारत में कितने ऐसे विशेषज्ञ उपलब्ध है और उनकी जन आरोग्य में क्या भूमिका है। मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में ऐसी परिषदों के गठन के लिए समय-समय पर आंदोलन होते रहते हैं। कुछ समय पूर्व नीति आयोग ने भी सामुदायिक चिकित्सा आधारित छह माह के एक विशिष्ट ब्रिज कोर्स के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पदस्थापना की अनुमति प्रदान की थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल में आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर फिजियोथेरपिस्ट को भौतिक चिकित्सा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया है। वैसे भी फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में पुनर्वास विज्ञान के साथ-साथ एलोपैथिक चिकित्सा के अधिकांश विषय एमबीबीएस स्तर तक पढ़ाए जाते हैं जो स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त है।
भौतिक चिकित्सा की प्रभावशाली प्रणाली का वांछित लाभ नागरिकों को नही मिल पा रहा
भारत सरकार का कोई सांविधिक निकाय न होने के चलते भौतिक चिकित्सा की इस प्रभावशाली प्रणाली का वांछित लाभ नागरिकों को नही मिल पा रहा है। हालांकि छतीसगढ़, झारखंड और हरियाणा में बीते दिनों कानून बनाकर इस क्षेत्र को सरकारी नियमन के दायरे में लाया गया है, लेकिन सच्चाई यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर एमएनसी या आयुष की तर्ज पर राष्ट्रीय भौतिक चिकित्सा आयोग की स्थापना भी की जानी चाहिए। नियामक तंत्र के अभाव में फर्जी भौतिक चिकित्सक भी देश भर में सक्रिय हैं। वैसे केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हर जिले में राज्य सरकारों एवं एनजीओ के साथ मिलकर ‘जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र’ संचालित किए जा रहे है। इनमें एक पद फिजियोथेरपिस्ट का भी होता है। हालांकि यह सुविधा जिला मुख्यालय पर ही है और यहां परामर्श भी केवल दिव्यांग जनों के लिए उपलब्ध कराया जाता है। बेहतर होगा छतीसगढ़ की तरह कस्बाई और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर भी स्वास्थ्य अधिकारी की तरह इनकी नियुक्तियों पर विचार किया जाए। वहीं केंद्र सरकार के सभी स्वास्थ्य केंद्रों, रेलवे, खेल परिसरों, पीएसयू, ईएसआई, मेडिकल कॉलेजों के अलावा सभी बड़े निजी अस्पतालों में फिजियोथेरपिस्ट के पद रहते हैं जिनका वेतनमान द्वितीय श्रेणी के अधिकारी के समान है।
भौतिक चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बनाना आवश्यक
आजकल की भागमभाग भरी जीवन शैली में शारीरिक रुग्णता ने एलोपैथी दवाओं पर निर्भरता को अतिशय बढ़ाने का काम किया है। भौतिक चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बनाने से इस समस्या का समाधान संभव है। भारतीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के बुनियादी अनुप्रयोग भी व्यायाम और शारीरिक संचेतना पर आधारित हैं। मोदी सरकार ने होम्योपैथी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और नर्सिंग सेक्टर की आधुनिक आवश्यकताओं के दृष्टिगत अद्यतन बनाने के निर्णय लिए हैं तो भौतिक चिकित्सा को क्यों अनदेखा छोड़ दिया गया है? वह भी तब जब यह वैज्ञानिक और पारंपरिक दोनों स्तरों पर किफायती एवं प्रभावी प्रणाली है।