Same Sex Marriage in India

Same Sex Marriage | भारत में समलैंगिक विवाह | सुप्रीम कोर्ट का निर्णय | GS Paper 2

Same Sex Marriage चर्चा में क्यों?

17 अक्टूवर 2023 को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता में 5-सदस्यीय बैंच ने 3:2 के बहुमत “समलैंगिक विवाह” से जुड़े मामले पर अपना निर्णय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय :

   कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से फैसला दिया जिसके तहत-

  1. समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इंकार कर दिया गया।
  2. समलैंगिक विवाह पर कानून बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को दी गई।
  3. विवाह के अधिकार को ”मौलिक अधिकार” का दर्जा नहीं दिया।
  4. समलैंगिक जोड़ों को एक साथ रहने की अनुमति होगी परन्तु इस संबंध को वैधानिक मान्यता नहीं दी जाएगी।
  5. अगर समलैंगिक जोड़ा खुद को पुरुष और महिला के तौर पर स्थापित करता है तो उससे विवाह करने एवं गोद लेने का अधिकार होगा।

विवरण 

पक्ष में तर्क

  1. मौलिक अधिकार : गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह का अधिकार भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में निहित है, जिसमें अनुच्छेद – 14, 15, 16, 19 और 21 शामिल है।

“नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ” (2018) और “के.एस. पुट्टास्वामी और अन्य” में सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस तर्क का समर्थन करता है।

  1. विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए): एसएमए, 1954 की लिंग-तटस्थ तरीके से व्याख्या करने की मांग की गई, जिसमें इसे “पुरुष और महिला” तक सीमित करने की बजाय किन्हीं दो व्यक्तियों को विवाह करने की अनुमति दी जाए।
  2. न्यूनतम विवाह योग्य आयु : यह सुझाव दिया गया कि समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष, समलैंगिक जोड़ों के लिए 21 वर्ष होनी चाहिए, और ट्रांसजेंडर जोड़ों के लिए, उनके द्वारा पहचाने जाने वाले लिंग के आधार पर वहीं आयु लागू होगी।
  3. विदेशी विवाह अधिनियम (एफएमए) : यह तर्क एफएमए, 1969 के तहत विदेशों में किए गए समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिया गया था।
  4. मौलिक अधिकारों की मान्यता: याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि LGBTQIA+ व्यक्तियों को शादी करने और परिवार बनाने के अधिकार से वंचित करना भेदभाव के खिलाफ़ उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
  5. ट्रांसजेंडर व्यक्ति संरक्षण अधिनियम : यह तर्क दिया गया कि समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह के अधिकार को ट्रांसजेंडर व्यक्ति संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा पहले ही मान्यता दे दी जा चुकी है।

 

विरोध में तर्क

  1. रख-रखाव और एसएमए : मामले में अदालत के क्षेत्राधिकार पर आपत्ति जताई गई। विवाह संबंधी कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद की होनी चाहिए।

एसएमए की तहत गैर-बिषमलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह अधिकारों को लागू करने में संभावित जटिलताएं।

  1. वैद्य राज्य हित: विवाहों को विनियमित करने में राज्य के रुचि पर ज़ोर दिया गया, जिसमें सहमति की उम्र, विवाह, द्विविवाह का निषेध और अनाचार का निषेध जैसे पहलू शामिल थे।
  2. बच्चों पर प्रभाव: “माँ और मातृत्व” की पारंपरिक भूमिकाओं ज़ोर देने के साथ, बच्चों पर समान-लिंग विवाह के प्रभाव के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई।
  3. विभिन्न राज्यों की प्रतिक्रियाएं: कई राज्यों ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की याचिका का विरोध किया, जबकि कुछ ने इस मामले पर विचार करने के लिए और समय मांगा।
  4. इस्लामवादी दृष्टिकोण: जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने मौजूदा कानूनी प्रावधानों और सामाजिक मानदंडो के संभावित निहितार्थो पर प्रकाश डालते हुए, समाज-लिंग विवाह की मान्यता के खिलाफ़ तर्क दिया।

केंद्र सरकार का तर्क

          केंद्र ने इस बात पर ज़ोर दिया कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उस आचरण को वैध नहीं बनाया है, जिससे अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया है और इसे समलैंगिक आचरण के समर्थन के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।

          सामाजिक मानदंड और भारतीय लोकाचार को बनाए रखने के लिए विवाह की मान्यता विषमलैंगिक जोड़ों तक ही सीमित होनी चाहिए।

          मौजूदा विवाह कानूनों में हस्तक्षेप संभावित रूप से देश की कानून व्यवस्था में अराजकता पैदा कर सकता है।

          समान लिंग के रिश्ते में साझेदार के रूप में एक साथ रहने की अवधारणा पति, पत्नी और बच्चों की पारंपरिक भारतीय परिवार इकाई के अनुरूप नहीं है।

Same Sex Marriage सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय

  1. मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहां बनाम अशोकन के.एम. और अन्य 2018) :- न्यायालय ने विवाह के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी, जिसमें किसी के जीवन साथी को चुनने के मौलिक अधिकार पर ज़ोर दिया गया?
  2. नवजेट सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ, 2018 :- सुप्रीम कोर्ट ने कानून के तहत समान सुरक्षा के अधिकार सहित सभी संवैधानिक अधिकारों के लिए LGBTQ समुदाय के हकदारी को मान्यता दी।

निष्कर्ष

लैंगिक पहचान या यौन रुझान के बावजूद, LGBTQ समुदाय के स्वतंत्र रूप से रहने और संबंध बनाने के लिए सशक्त बनाने वाले एक भेदभाव विरोधी कानून की आवश्यकता है। परिवर्तन का दायित्व व्यक्तियों के बजाय राज्य और समाज पर होनी चाहिए।

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