अंग्रेजों का दिया क्रिकेट ऐसा खेल है, जिसकी कमेंट्री में अंग्रेजी शब्दों की भरमार है। फिर भी, इसकी लोकप्रियता सातवें आसमान पर है। गुरुवार को वाराणसी में संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में यही क्रिकेट कुछ ऐसे अनूठे अंदाज में खेला गया कि देखने वाले भी तृप्त हो उठे। शास्त्र-पुराण में रमने वाले त्रिपुंडधारी बटुक को धोती-कुर्ता पहने चौके छक्के जड़ रहे थे। खेल की कमेंट्री हो या बटुकों के बीच संवाद, सबको संस्कृत में हुआ। इस परंपरा की नीवं वाराणसी के ही शास्त्रार्थ महाविद्यालय ने यही कोई दशक भर पहले रखी थी। कॉलेज के स्थापना दिवस पर पहले दोस्ताना मैच होता था। फिर, देव भाषा संस्कृत की ओर ध्यान खींचने के लिए 4 वर्ष पहले नया का खाका खींचा। दो आचार्यों ने खेल की अंग्रेजी शब्दावली को संस्कृत में ढालने का दुरुह कार्य किया। संस्कृत में कमेंट्री ने सबको मोहित किया। आज यह सिर्फ खेल प्रतियोगिता भर नहीं, बल्कि देव भाषा की बढ़ती ग्राहयता की जीवंत कहानी है। यहां कितनी ही टीमें मैदान में खेले, एकतरफा जीत तो संस्कृत भाषा की ही होती है ।
वैसे, देव भाषा की महत्ता का अद्भुत बखान सुषमा स्वराज ने श्री चंद्रशेखर सरस्वती राष्ट्रीय एमिनेंस अवार्ड ग्रहण करते वक्त किया था। कहा था, दुनिया में जब टॉकिंग कंप्यूटर के बाद हुई तो प्रश्न उठा कर कौन सी भाषा चुनी जाए। भाषा ऐसी हो, जो व्याकरण की दृष्टि से वैज्ञानिक हो और ध्वनि की दृष्टि से भी। गर्व से माथा ऊंचा करके कर सकती हूं। कि जिसे कंप्यूटर की भाषा के उपयोग पाया गया, व संस्कृत है। मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं कि जहां विज्ञान का अंत होता है,वहीं से संस्कृत शुरू होती है। हमने दिन प्रतिदिन के जीवन में इसका प्रयोग न करके संस्कृत को कमजोर किया है। योगी सरकार ने भाषा समृद्धि के लिए भी संस्कृत में प्रचार-प्रसार सामग्री जारी करनी शुरू कर दी है। यही नहीं,संस्कृत शिक्षा निदेशालय बनाने व प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों को इस भाषा से परिचित करने के लिए 600 प्राक्षिकों की तैनाती होगी। संस्कृत का जैसे ही रोटी-रोजगार से रिशता बनेगा, लोक व्यवहार में भी स्वीकायर्ता स्वयमेव विस्तार पाने लगेगी।